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महाबंधे पदेसबंधाहियारे
पंचग॰ णत्थि अप्पाबहुगं । एवं वेउब्वियमि० । कम्मई० - अणाहार० सव्वपगदीणं णत्थि अप्पा बहुगं । अणुदिस याच सव्वट्ठ त्ति अपजत्तभंगो | एवं आहार० - आहारमि०परिहार ० - संजदासंजद ० - सासण० सम्मामिच्छादिट्ठि त्ति । णवरि सम्मामिच्छादिट्ठीगं णत्थि अप्पा बहुगं ।
एवं अप्पा बहुगं समत्तं ।
एवं अज्भवसाणसमुदाहारे ति समत्तमणियोगद्दारं ।
जीवसमुदाहारपरूवणा
३३६. जीवसमुदाहारेति तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि । तं जहा — पमाणागमो अप्पा बहुगे त्ति ।
पमाणाणुगमो जोगट्ठाणपरूवणा
३४०. पमाणाणुगमो त्ति तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि – जोगट्ठाण - परूवणा पदेसंबंधड्डाणपरूवणा चेदि । जोगड्डाणपरूवणदाए सव्वत्थोवो 'सुहुमअपज तयस्स जहण्णगो जोगो । बादर अपजत्तयस्स जहण्णगो जोगो असंखेखगुणों । एवं बीइंदि ० - तीइंदि ० चदुरिंदि ० - असण्णिपंचिंदि० अपज० जह० जोगो असंखैअगुणो ।
चाहिए | कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सब प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवामें अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है । इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, परिहार विशुद्धिसंयत, संयतासंयत, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें अल्पबहुत्व नहीं है ।
इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । इस प्रकार अध्यवसानसमुदाहार अनुयोगद्वार समाप्त हुआ । जीवसमुदाहार प्ररूपणा
३३६. जीवसमुदाहारका प्रकरण है । उसमें ये दो अनुयोगद्वार हैं । यथा - परिमाणानुगम और अल्पबहुत्व | परिमाणानुगम योगस्थानप्ररूपणा
३४०. परिमाणानुगम में ये दो अनुयोगद्वार होते हैं - योगस्थानप्ररूपणा और प्रदेशबन्ध - स्थानप्ररूपणा । योगस्थानप्ररूपणाकी अपेक्षा सूक्ष्म अपर्याप्त जीवका जघन्य योग सबसे स्तोक है । उससे बादर अपर्याप्तका जघन्य योग असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, श्रीन्द्रिय अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त जीवका जघन्य योग उत्तरोत्तर
१. ता० प्रतौ 'वेडव्वियमि० कम्मइ०' इति पाठः । २. ता० प्रतौ 'सम्मादिट्ठि णत्थि ' आ० प्रतौ 'सम्मादिद्वीणं णत्थि' इति पाठः । ३. ता०प्रतौ 'चेदि' इति पाठो नास्ति । ४. ता०प्रतौ 'सव्वत्थोवा ( बो)' आ० प्रतौ 'सव्वत्थोवा' इति पाठः । ५. ता०प्रतौ 'जहण्णयं जोगो' इति पाठः । ६. ता०प्रतौ 'असंखेजगुणं' इति पाठः । ७. ता० प्रती 'अपज० । जह०' इति पाठः ।
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