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वडिबंधे अप्पाब अं
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भावो
३२४. भावाणुगमेण सव्वत्थ ओदइगो भावो। एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्वं ।
अप्पाबहअं ३२५. अप्पाबहुगं दुवि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण पंचणा० सव्वत्थोवा अवत्त । अवद्विदबं०' अणंतगु० । संखेंजभागववि-हाणि० दो वि तुल्ला असंखेंजगुणा। संखेजगुणवड्डि-हाणि० दो वि तुल्ला असंखजगुणा । असंखेजभागवड्डि-हाणि दो वि तुल्ला असंखेजगुणा । असंखेंजगुणहाणि० असंखेंजगुणा । असंखेजगुणवड्ढि० विसे० । एवं थीणगि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४-ओरा०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत। एस भंगो छदंस०-बारसक०-भय-दु० । णबरि सव्वत्थोवा अवत्त० । अणंतभागवड्डिबन्ध करनेवाले अधिकसे अधिक चौबीस मुहूर्तके अन्तरसे हो सकते हैं, इसलिए इन प्रकृतियों के उक्त पदकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त कहा है । तथा सासादन गुणस्थानका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी
और अनाहारक जीवोंमें मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान अन्तर बन जाता है, इसलिए इन तीन मार्गणाओंमें मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान अन्तरकाल कहा है । शेष कथन सुगम है।
इस प्रकार अन्तरकाल समाप्त हुआ।
भाव ३२४. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदायिक भाव है। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए।
इस प्रकार भाव समाप्त हुआ।
अल्पबहुत्व ३२५. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-ओष और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरणके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कामंगशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँचअन्तरायकी अपेक्षा जानना चाहिए। तथा छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साको अपेक्षा यही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे
१. ता आ प्रतौ 'सम्वत्योवा । अवत्त० अवट्टिदबं.' इति पाठः । २. आ०प्रती 'असंखेजगुणवडिहाणि.' इति पाठः
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