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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे चतुष्क सो इनका अवक्तव्यपद ऊपरके गुणस्थानवाले जीवोंके संयतासंयत होनेपर प्रथम समयमें होता है और ऐसे जीव संख्यात होकर भी कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक संख्यात समय तक ही अवक्तव्यपद कर सकते हैं, इसलिए इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवांका काल भी ज्ञानावरणके समान बन जानेसे उसे उनके समान जाननेकी सूचना की है। अब रहीं इन प्रकृतियोंकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि सो इनके उक्त पदोंको असंख्यात जीव कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक असंख्यात समय तक कर सकते हैं, इसलिए इन प्रकृतियोंके उक्त पदवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके नौ पदोंका बन्ध भी यथायोग्य एकेन्द्रियादि सब जीवोंके सम्भव है, इसलिए इनके इन पदोंके बन्धक जीवोंका काल ज्ञानावरणके समान कहा है। तथा इनकी अनन्तभागवृद्धि, अनन्तभागहानि और अवक्तव्यपद करनेवाले जीव युगपत् और लगातार असंख्यात होते हैं, इसलिए इनके इन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । पुरुषवेद और चार नोकषायो की अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके वन्धक जीवों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके इन पदों की अपेक्षा कहे गये कालके समान ही घटित कर लेना चाहिए। तथा ये परावर्तमान प्रकृतियाँ हैं और यथायोग्य एकेन्द्रिय आदि जीवों के भी इनका बन्ध सम्भव है, इसलिए इनके शेष पदोंके बन्धक जीवों का काल सर्वदा कहा है। नरकायु, मनुष्यायु और देवायुकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पहले बतला आये हैं । यहाँ जघन्य काल तो एक समय ही है, क्योंकि नाना जीव एक समयतक इन पदोंको करें और दूसरे समयमें अन्य पदोंको करें, यह सम्भव है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है, क्योंकि नाना जीव क्रमसे निरन्तर यदि इन पदोंको करें तो उस सब कालका जोड़ उक्तप्रमाण होता है। परन्तु इनके शेष पदोंका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है, क्योंकि नाना जीव एक समय तक ही इन पदोंको करें और दूसरे समयमें विवक्षित पदके सिवा अन्य पदको करने लगें, यह भी सम्भव है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है, क्योंकि यदि अन्तरके बिना नाना जीव इन आयुओंके बन्धका प्रारम्भ कर इन पदोंको करें तो उस कालका जोड़ आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाणसे अधिक नहीं होता। तात्पर्य यह है कि असंख्यातगुणवृद्धि आदि दो पदोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मान लीजिए कुछ जीवोंने अन्तर्मुहूर्त कालतक ये दोनों पद किये। उसके बाद व्यवधान न पड़ते हुए अन्य कुछ जीवोंने ये दो पद किये । इस प्रकार निरन्तर क्रमसे इन पदोंके करनेपर वह काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, इसलिए तो इन पदवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा शेष पदोंमें एक जीवकी अपेक्षा अवक्तव्यपदका उत्कृष्ट काल एक समय है, अवस्थितपदका उत्कृष्ट काल सात समय है और शेष पदोंका उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है यहाँ भी व्यवधानके बिना एकके बाद दूसरे इस क्रमसे यदि इन पदोंको करें तो इस प्रकार व्यवधानके बिना प्राप्त हुए उत्कृष्ट कालका जोड़ आवलिके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं होता, क्योंकि असंख्यात समयोंका जोड़ भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होगा और असंख्यात आवलियोंके असंख्यातवें भागका जोड़ भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होगा, इसलिए यहाँ शेष पदवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। नाना जीवोंके वैक्रियिकपटकका निरन्तर बन्ध होता रहता है, इसलिए यहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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