SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ महाबंधे पदेसबंधाहियारे वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० चत्तारिवाडि-हाणि-अवडि० केवचिरं कालादो होदि ? सव्वद्धा'। अवत्त० केवचिरं कालादो० ? जह० एग०, उक्क० संखेंजसमयं । थीणगि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४-ओरालि० णाणाभंगो। णवरि अवत्त० केवचिरं कालादो०? जह० एग०, उक्क० आवलियाए असंखें। छदंस०-अट्ठक०-भय-दु० णाणाभंगो। णवरि अणंतभागवड्डि-हाणि० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । अपच्चक्खाण०४ णाणा०भंगो । णवरि अणंतभागवड्डि-हाणि-अवत्त० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । पुरिस०-चदुणोक० अणंतभागववि-हाणि० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें। सेसपदा० केवचिरं० ? सव्वद्धा । तिण्णिाउ० असंखेंजगुणवड्डि-हाणिबंधगा केवचिरं ? जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखें । तिण्णिवड्डिहाणि-अवट्ठि०-अवत्त० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें। वेउव्वियछ० असंखेंजगुणवड्डि-हाणि० सव्वद्धा। तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । आहारदु० असंखेंजगुणवड्डि-हाणि० सव्वद्धा। तिण्णिवड्डि ज्ञानावरण, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? सर्व काल है । इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और औदारिकशरीरका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय और जुगुप्साका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तभागवृद्धि, अनन्तभागहानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। पुरुषवेद और चार नोकषायोंकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? सर्वदा है। तीन आयुओंकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। वैक्रियिकषट्ककी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । तथा तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। आहारकद्विककी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। तथा इनकी तीन वृद्वि और १. ता प्रतो 'सव्वत्थो ( द्धा ).' इति पाठः। २. ता प्रतौ 'सव्वत्थो ( द्धा )' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy