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________________ वडिबंधे परिमाणं 275 तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०-उप-णिमि०-पंचंत. चत्तारिवभि-हाणि-अवट्टि. असंखेजा / अवत्त० संखेंजा। एसिं अणंतभागवड्डि-हाणि० अत्थि तेसिं संखेंजा। दोआउ०वेउव्वियछक्कं ] आहारदुगं तित्थय० सव्वपदा कॅत्तिया ? संखेंजा। सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वपदा असंखेंजा / मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सव्वपदा केत्तिया ? संखेंजा / एवं सव्वट्ठ०-आहार०-आहारमि०-अवगदवे०-मणपज्ज०-संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहार०सुहुमसं० / __ 306. एइंदि०-वणप्फदि-णिगोद० सव्वपगदीणं सव्वपदा कॅत्तिया ? अणंता / णवरि मणुसाउ० सव्वपदा केत्तिया 1 असंखेंज्जा। अन्तरायकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यात हैं। तथा अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं / यहाँ जिनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि है उनमें इन पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। दो आयु, वैक्रियिकषटक, आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं / शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार अर्थात् मनुष्य पर्याप्त जीवोंके समान सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ—सामान्य मनुष्योंका परिमाण असंख्यात है। लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य भी पाँच ज्ञानावरणदिकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदका बन्ध करते हैं, इसलिए यहाँ इन प्रकृतियोंके उक्त पदवाले जीवोंका परिमाण असंख्यात कहा है। परन्तु इनका अवक्तव्यपद लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंके सम्भव नहीं है, इसलिए इनके अवक्तव्य पदवाले जीवोंका परिमाण संख्यात कहा है / यहाँ विवक्षित प्रकृतियोंकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि ये पद भी लब्ध्य'पर्याप्तक मनुष्योंके नहीं होते, इसलिए इन पदवाले जीर्वोका परिमाण भी संख्यात कहा है। दो आयु, वैक्रियिकषटक, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध गर्भज मनुष्य यथासम्भव करते है,यह स्पष्ट ही है। इसलिए यहाँ इन प्रकृतियोंके सब पदवाले जीवोंका परिमाण संख्यात कहा है। शेष सब प्रकृतियों और उनके सब पदोंका बन्ध मनुष्योंमें यथायोग्य सबके सम्भव है, इसलिए उनके सब पदवाले जीवोंका परिमाण असंख्यात कहा है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी इनका परिमाण ही संख्यात है, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके सम्भव सब पदवाले जीवोंका परिमाण संख्यात कहा है। यहाँ गिनाई गई अन्य सब मार्गणाओंमें जीवोंका परिमाण संख्यात है, इसलिए उनमें अन्तके इन दो प्रकारके मनुष्योंके समान जाननेकी सूचना की है। 306. एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवों में सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। विशेषार्थ-इन तीन मार्गणाओंमें परिमाण अनन्त है, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके 1 ता प्रतौ 'अणंतभागव [वि...'आहारदुगं] तित्थय' आ प्रतौ अणंतभागवटि ..... आहारदुर्ग तित्थय.' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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