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पदणिकग्ववे सामित्तं
२२१ णवंस०-दोगोद-पंचंत० मदिभंगो । छदंस-बारसक०-सत्तणोक० उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्ण० सम्मादिहिस्स अट्ठविध तप्पाऑग्गजह [ उक्क० ] जोगट्ठाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? जो सम्मादिट्ठी उक०जोगी मदो अण्णदरीए गदीए उववण्णो तप्पाओग्गजह. पडिदो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स० ? यो सत्तविधवं उक० जोगी पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णगे जोगट्ठाणे पडिदो' अट्ठविधबंधगो जादो तस्स० उक्क० अवट्ठाणं । णामाणं मदि०भंगो । णवरि देवगदि०४-समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदें. ओघं ।
२५५. चक्खुदंसणी. तसपज्जत्तभंगो । णवरि चदुरिंदियपजत्तेसु उववण्णो० । अचक्खु० ओघ । किण्ण-णील-काऊणं असंजदभंगो । तेऊए पंचणा०-थीणगि०३- . [दोवेद०- ] मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्थिवेद-दोगोद-पंचंत० उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्णदरस्स अट्ठविधबंधगो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी। उक्क० हाणी कस्स ! यो सत्तविधबंधगो उक०जोगी मदो देवो जादो तस्स उक्क० हाणी । णवरि थीणागिद्धि०३मिच्छ०-अणंताणु०४-इस्थिवे. दुगदियस्स । अवट्ठाणं सत्थाणे०। छदंस०-सत्तसमान है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकपायोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त कर सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट योगवाला सम्यग्दृष्टि जीव मरा और अन्यतर गतिमें उत्पन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उनकी उत्कृय हानिका स्वामी है। उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? जो सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा,वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि देवगतिचतुष्क, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका भङ्ग ओघके समान है।
२५५. चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें बस पर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुए जीवके कहना चाहिए। अचक्षुदर्शनवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। कृष्ण नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें असंयत जीवोंके समान भङ्ग है। पीतलेश्यावाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुवन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, दो गोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला अन्यतर जीव सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और देव हो गया, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। इतनी विशेषता है कि स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और स्त्रीवेद इनका भङ्ग दो गतिवाले जीवके कहना चाहिए। तथा इनके अवस्थानका स्वामित्व
१. ता०प्रतौ 'तप्पाओग्गजहणं जोगहाणं पडिदो' इति पाठः । २, ता.आ०प्रत्योः 'इत्थिवे. सेसाणं दुगदियस्स,' इति पाठः।
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