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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं २१७ संजद० । णस० तिण्णि वि मणुसभंगो । चदुदंसणा० उक्क० वड्डी कस्स० ? जो छविधबंधगो तप्पाऑग्गजह०जोग०' उक्क० जोगट्ठाणं गदो चदुविधबंधगो जादो तस्स उक्क० बड्डी । उक० हाणी कस्स० ? जो चदुविधबंधगो उक० जोगी पडिभग्गो तप्पाओग्गजह०जोगट्टाणे पडिदो छविधबंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी। तस्सेव से काले उक० अवट्ठाणं। चदुसंजल० उक० वड्डी कस्स०? यो अण्णद० पमत्तसंजदस्स अट्ठविधबंधगो जादो तप्पाऑग्गजह०जोगट्ठाणादो उक्क० जोगट्ठाणं गदो तदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो सत्तविध पडिभग्गो अट्ठविधबंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवढाणं । पुरिस० उक्क० वड्डी अवट्ठाणं ओघं । हाणी अवट्ठाणम्हि कादव्यं । चदुआउ० ओघ । णामाणं सव्वाणं जोणिणिभंगो। णवरि तिरिक्खग० अण्णदर० दुगदि० । एवं सव्वाओ णामाओ। पुरिस० इथिवेदभंगो। णवरि सम्मादिहिपगदीणं । हाणी मदो अण्णदरीए गदीए उववण्णो तप्पा०जह० पडिदो तस्स उक्क० हाणी। सेसाणं हाणी अवट्ठाणम्मि कादच्वं । जीवके कहना चाहिए। नपुंसकवेदके तीनों ही पदोंका भङ्ग मनुष्योंके समान है। चार दर्शनावरणकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? छह प्रकारके दर्शनावरणका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगम्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर चार प्रकारके दर्शनावरणका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उनको उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? चार प्रकारके दर्शनावरणका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और छह प्रकारके दर्शनावरणका बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । चार संज्वलनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करकेवाला जीव प्रतिभग्न होकर आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा अनन्तर समयमें वही जीव उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। पुरुषवेदकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका स्वामी ओघके समान है । हानि अवस्थानके समय करनी चाहिए। अर्थात् अवस्थानका स्वामित्व घटित करते समय पूर्व समयमें हानि होती है और अनन्तर समयमें अवस्थान होता है। चार आयुओंका भङ्गओघके समान है । नामकर्मकी सब प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगतिका भङ्ग अन्यतर दो गतिके जीवके कहना चाहिए। इसी प्रकार नामकर्मकी सब प्रकृतियोंके विषयमें जानना चाहिए। पुरुषवेदी जीवोंमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्दृष्टि सम्बन्धी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व कहते समय जो जीव मरा और अन्यतर गतिमें उत्पन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि अवस्थानमें करनी चाहिए । १. ता०प्रतौ [त] प्पाओग्गजह• जोग०' इति पाठः ! २. आ०प्रतौ 'जो छविधबंधगो' इति पाठः। ३. ता.आ.प्रत्योः 'हाणी अवहाणं हि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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