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________________ २१६ महाबंधे पदेसबंधाहियारे तप्पाओग्गजहण्णादो जोगट्ठाणादो उकस्सजोगहाणं गदो तस्स उक० वड्डी। एवं अणाहारगेसु । २४८. इत्थिवेदेसु पंचणा०-थीणगि०३-दोवेदणी०--मिच्छ०-अणंताणु०४इथिवे०-णीचा०-पंचंत. उक्क० वड्डी कस्स० ? जो अढविधबंधगो तप्पाऑग्गजह०जोगट्ठाणादो उक्क० जोगट्ठाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो सत्तविधयंधगो उक्क जोगी मदो असण्णीसु उववण्णो तप्पाङग्गजह० जोगट्ठाणे पडिदो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स ? जो सत्तविधबंधगो उक०जोगी पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णजोगट्ठाणे पडिदो अट्ठविधबंधगो जादो तस्स उक्त अवट्ठाणं । णिद्दा-पयला-छण्णोक० उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्णदरस्स सम्मादिढि० यो अदुविधवंधगो तप्पाओग्गजह जोगट्ठाणादो उक्क०जोगट्ठाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्कस्सिगा वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? जो सत्तविधधगो उक्क०जोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजहण्णजोगट्ठाणे पडिदो' अढविधयंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । एवं अपञ्चक्खाण०४ असंजद० पच्चक्खाण०४ संजदा आतप और उद्योतकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्यायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। इसी प्रकार अनाहारक जीवों में जानना चाहिए। २४८. स्त्रीवेदवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धोचतुष्क, स्त्रीवेद, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और असंज्ञियोंमें उत्पन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा,वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। निद्रा, प्रचला और छह नोकषायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही जीव अनन्तर समयमें उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। इस प्रकार अप्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी उत्कृष्ट वृद्धि आदि पदोंका स्वामित्व असंयतसम्यग्दृष्टिके तथा प्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी उत्कृष्ट वृद्धि आदि पदोंका स्वामित्व संयतासंयत १. ता०प्रतौ '-जोगहाणं पडिदो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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