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________________ पदणिकखेवे सामित्तं २१५ ० जोगाणं गदो तस्स उक्क० वड्डी । छदंस० चारसक० सत्तणोक० उक्क० वड्डी कस्स० ? अणदरस्स सम्मादिट्ठि ० तप्पाऔग्गजह० जोगट्ठाणादो उक० जोगट्ठाणं गदो तस्स उक्क० बड्डी । तिरिक्खगदिणामाए उक्क० वड्डी कस्स० ? यो तेवीसदिणामाए तप्पाऔग्गजह० जोगट्ठाणादो उक० जोगट्टाणं गदो तस्स उक्क० वड्डी । एवं तिरिक्खगदिभंगो एइंदि० ओरालि० - तेजा० क० - हुंडसं० वण्ण०४ - तिरिक्खाणु० - अगु० - उप० थावर०० - बादर-सुहुमपत्तेय० ० साधार० अथिर-असुभ दूभग अणादें ० - अजस० - णिमिण ति । मणुसग दिणामाए उक्क० वड्डी कस्स० १ यो पणवीसदिणामाए तप्पाऔग्गजह ० जोगट्ठाणादो उक्कस्सं जोगट्ठाणं गदो तस्स उक्क० वड्डी । एवं मणुसगदिभंगो चदुजादि-ओरालि०अंगो० - असंप ० - मणुसाणु० - पर० - उस्सा० तस-पञ्जत्त० - थिर-सुभ-जस० । देवगदि० उक्क० वड्डी कस्स० यो सम्मादिट्ठी तप्पाऔग्गजह० जोगट्ठाणादो उक० जोगट्टाणं गदो तस्स उक्क० वड्डी । एवं देवगदि ०४ । एवं चैव तित्थय० । णवरि एगुणतीस दिणामाए बंधगो जादो तस्स ० उक० वड्डी । चदुसंठा० - पंचसंघ० - अप्पसत्थ० - दुस्सर० उक्क० स० ? गुणतीसदिणामाए बंघगो तप्पाऔग्गजह ० जोगट्ठाणादो उक० जोगट्ठाणं दो तस्स उक० वड्डी । आदाउञ्जो० उक० वड्डी कस्स० ? यो छब्बीसदिणामाए बंधगो उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । तिर्यञ्चगतिकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तेईस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जो जीव जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। इस प्रकार तिर्यश्चगतिके समान एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, प्रत्येक, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशः कीर्ति और निर्माणकी अपेक्षा उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी जानना चाहिए। मनुष्यगतिकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । इसी प्रकार मनुष्यगतिके समान चार जाति, औदारिकशरीरआङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, त्रस, पर्याप्त, स्थिर, शुभ और यशःकीर्तिकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी जानना चाहिए। देवगतिकी उत्कृष्टि वृद्धिका स्वामी कौन है ? सम्यग्दृष्टि जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । इसी प्रकार देवगत्यानुपूर्वी और वैक्रियिकद्विक इन तीन प्रकृतियोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार तीर्थङ्कर प्रकृतिकी अपेक्षा उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि जो नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंका बन्धक है, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । १. ता० प्रतौ 'णिमिणत्थि (त्ति ) । मणुसगदिणामाए' इति पाठः । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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