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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं २०६ ओघं थीणगिद्धिभंगो'। चदुआउ०-वेउब्वियछक-मणुस०-मणुसाणु०- उच्चा० तिण्णि वि सत्थाणे कादव्वं । ओघेण अट्ठावीसाए सह उक्कस्सं तेसिं कम्माणं सत्थाणे कादव्यं । तिण्णि वि एसिं सम्मादिट्ठी सामित्तं तेसि सत्थाणे कादव् । सेसाणं ओघं ।। २३६. पंचिंदियतिरिक्ख०३ पंचणाणावरणदंडओ थीणगिद्धि०३-मिच्छ०अणंताणु०४-असाद०-णस०-णीचा० उक्त० वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविधबंधगो तप्पाऑग्गजहण्णगादो जोगट्ठाणादो उक्कस्सगं जोगट्ठाणं गदो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? जो सत्तविधबंधगो उक्क०जोगी मदो असण्णिपंचिंदियअपज्जत्तगेसु उववण्णो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवठ्ठाणं कस्स ? यो सत्तविध० उक्कस्सजोगी पडिभग्गो अझविधबधगों जादो तस्स उकस्सं अवट्ठाणं । छदंस०-हस्स-रदि-अरदि-सोगभय-दुगुं० उक० वड्डी कस्स० १ अट्ठविध तप्पाऑग्गजहण्णजोगट्ठाणादो उकस्सजोगट्ठाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक० वड्डी । उक० हाणी कस्स ? जो सत्तविधबंधगो उक्क०जोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजहण्णजोगट्ठाणे पडिदो तस्स उक्क० हाणी। तस्सेव से काले उक० अवट्ठाणं । अपचक्खाण०४ असंजदसम्मादिहि, वृद्धि, हानि और अवस्थानका स्वामी ओघसे स्त्यानगृद्धिके समान है। चार आयु, वैक्रियिकषटक, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके तीनों पदोंका स्वामित्व स्वस्थानमें कहना चाहिए । ओघसे अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ जिनका उत्कृष्ट स्वामित्व है, उनको स्वस्थानचे करना चाहिए। जिनके तीनों पदोंका सम्यग्दृष्टि स्वामी है, उनको स्वस्थानमें कहना चाहिए। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। २३६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें पाँच ज्ञानावरण दण्डक, स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, असातावेदनीय, नपुंसकवेद और नीचगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला जो तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे यक्त जो जीव प्रति न होकर आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा,वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। छह दर्शनावरण, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला-जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ और सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त हुआ,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके १. ताप्रती 'ओघं । थीणगिद्धिभंगो' इति पाठः। २. आ०प्रतौ 'उक्स्सं कम्माणं' इति पाठः । ३. ता प्रतौ 'अहविधं बंध.' आ०प्रतौ 'अवदिबंधगो' इति पाठः । ४. ता०प्रतौ -जोगहाणं उकस्सजोगटाणं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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