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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे २३७. अप्पसत्थ०-दुस्सर० उक्क० वड्डी देवगदिभंगो। उक्क० हाणी कस्स? मदो रइएसु उववण्णो तीसदिणामाए बंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं समचदुभंगो । सुहुम-अपज्ज०-साधार० उक्क० वड्डी तिरिक्खगदिभंगो । हाणी तं चेव पणवीसदिणामाए बधगो जादो तस्स उक्क. हाणी । उक्त अवट्ठाणं कस्स ? यो सत्तविधबंधगो एवं याव अट्ठविध जादो ताधे वि ताओ चेव तेवीसदिणामाएं बंधदि णो पणवीसं तस्स उक० अक्ट्ठाणं । बादरणामाए उक्क० वड्डी अवट्ठाणं तिरिक्खगदिभंगो । हाणी. ? मदो बादरएइंदियअपज्जत्तएसु उववण्णो तीसदिणामाए बंध० जादो तस्स उक्क० हाणी। पत्तेयसरीरं तिरिक्खगदिभंगो। णवरि णियोद वज पत्तेयसरीरसुहुमेसु उववण्णो । तित्थ० उक्क० वड्डी अवट्ठाणं णग्गोदभंगो। उक्क० हाणी कस्स ? जो सत्तविध उक० जोगी मदो देव-णेरइएसु उववण्णो तप्पाओग्गजह० पडिदो तीसदिणामाए बंधगो जादो तस्स उक० हाणी। एदेण बीजेण णेरइगदेवेसु सव्वपगदीणं उक्क० बड्डी अवठ्ठाणं हाणीओ च ओघं देवगदिभंगो। एवं सव्वणिरय-देवाणं । २३८. तिरिक्खेसु पंचणा०-दोवेदणी०-दोगोद-पंचंत० वड्डि-हाणि-अवट्ठाणाणि २३७. अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी देवगतिके समान है। इनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ?जो जीवमराऔरनारकियोंमें उत्पन्नहोकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। इनके उत्कृष्ट अवस्थानका भङ्ग समचतुरस्रसंस्थानके समान है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी तिर्यञ्चगतिके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? वही जीव जब नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियोंका बन्धक हुआ तब उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? जो सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला इसी प्रकार आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला हआ वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। वह तब भी नामकर्मकी उन्हीं तेईस प्रकृतियोंका बन्ध करता है; पञ्चीस प्रकृतियोंका बन्ध नहीं करता । बादरनामकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग तिर्यञ्चगतिके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो जीव मरा और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा, वह उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। प्रत्येकशरीरका भङ्ग तिर्यञ्चगतिके समान है। इतनी विशेषता है कि निगोदको छोड़कर जो प्रत्येकशरीरसूक्ष्मोंमें उत्पन्न हुआ, ऐसा कहना चाहिए । तीर्थङ्कर प्रकृतिकी वृद्धि और अवस्थानका स्वामी न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानके समान है। इसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरकर देव नारकियोंमें उत्पन्न हुआ और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा, वह उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । इस बीजपदके अनुसार नारकी और देवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थानके स्वामीका भङ्ग ओघसे देवगतिके समान है। इसी प्रकार सब नारकी और देवोंमें जानना चाहिए । २३८. तिर्यश्चों में पाँच ज्ञानावरण, दो वेदनीय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट १. ता०प्रतौ 'सत्तविधबंधः । एवं' इति पाठः। २. ता.आप्रत्योः 'तेत्तीसदिणामाए' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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