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________________ महाधे पदेसबंध हियारे २. सव्वरइएस सव्वपगदीणं उक्क० अणु० पदे ०बं० केव० ? लोगस्स असंख ० । सेसाणं पि असंखेज्जरासीणं एवं चैव कादव्वं । २ ३. एइदिए पंचणा०-णवदंसणा० - मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक ० - तिरिक्ख० एइंदि० - ओरालि० -तेजा० - क० - हुंड सं० वण्ण०४- तिरिक्खाणु ० - अगु०४ - थावर - सुहुम ०पज्ज०-अपज्ज०-पत्ते०-साधार० - थिराथिर - सुभासुभ- दूभग - अणादें ० - अजस ० - णिमि० - णीचा० - पंचत० उक्क० अणु० केव० ? सव्वलोगे । मणुसाउ० ओघं । मणुस ०मणुसाणु ० उच्चा० उक्क० लोग असंखे० । अणु० केव० ? सव्वलोगे । सेसाणं उक्क लोग० संखैज्जदि० । अणु० सव्वलो० । एवं बादरएइंदियपज्जत्तापज्जत्तगाणं । वरि तस संजुत्ताणं उक्क० अणु० लोग ० संखेज्ज० । णवरि मणुसगदि०४ उक्क० अणु० लोग • असंखें । सव्वसुहुमेसु सव्वपगदीणं उक० अणु० सव्वलो० । णवरि मणुसाउ० उक्क० अणु० असंखे० । एकेन्द्रियादि अनन्त जीव बन्ध करते हैं और वे वर्तमानमें सर्व लोक में पाये जाते हैं । यहाँ सामान्य तिर्यञ्च आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें बन्धको प्राप्त होनेवाली अपनी-अपनी प्रकृतियोंके अनुसार यह क्षेत्र प्ररूपणा बन जाती है, इसलिए उनमें ओघके समान क्षेत्रके जाननेकी सूचना की है। २. सब नारकियों में सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवों का कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । शेष असंख्यात संख्यावाली राशियों में इसी प्रकार क्षेत्र घटित कर लेना चाहिए । विशेषार्थ - सब नारकी और यहाँ निर्दिष्ट अन्य मार्गणाओंका क्षेत्र ही लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके दोनों पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र कहा है । ३. एकेन्द्रियोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, सात नोकपाय, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भाग, अनादेय, अयशः कीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सव लोक क्षेत्र है । मनुष्यायुका भंग ओघके समान है । मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । शेष प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका सर्वलोक क्षेत्र है । इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें त्रससंयुक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । उसमें भी इतनी और विशेषता है कि मनुष्यगतिचतुष्कका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । सब सूक्ष्म जीवों में सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका सब लोकप्रमाण क्षेत्र है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्र है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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