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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ताधेव' पणवीसदिणामाओ बंधदि णो तीसं । केण कारणेण ? तं चेव । एदं कारणं पणवीसदिणामाओं बंधमाणगस्स उक्क० अवट्ठाणं णो तीसं । ___ २३२. आहारदुर्ग उक० वड्डी कस्स० १ यो अट्ठविधबंधगो। तप्पाऑग्गजहै। जोगट्ठाणादो उक्क० जोगट्ठाणं गदो तीसदिणामाए सह सत्तविधधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? यो सत्तविधबं० उक्क जोगी पडिभग्गो तप्पाओग्गजह० पडिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । २३३. समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदें. उक्क० वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविधबंधगो तप्पाओग्ग० उक्क० जोगट्ठाणं गदो अट्ठावीसदिणामाए सह सत्तविधबंधगो जादो तस्स [ उक्क० ] वड्डी। उक्क० हाणी कस्स० ? यो सत्तविधबंध० उक्क० जोगी मदो देवो जादो तप्पा जह० पडिदो तीसदिणामाए सह बंधगो जादो तस्स उकै० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स० ? यो सत्तविध० उक० जोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजहण्णगे० पडिदो अट्ठविधबंधगो जादो । ताधे ताओ चेव अट्ठावीसदिणामाए बन्ध करता है। तीस प्रकृतियोंका नहीं। कारण क्या है ? कारण वही पूर्वोक्त है। इस कारण नामकर्मकी पञ्चीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जीव उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। तीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जीव नहीं। २३२. आहारकद्विककी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा.वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा वही अनन्तर समयमें उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है।। २३३. समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योग स्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और देव हुआ। तथा तत्प्रायोग्य जघन्य योगको प्राप्तकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात कोका बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगको प्राप्त हआ और आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा. वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। उस समय वह नामकर्मकी उन्हीं अट्ठाईस प्रकृतियोंका बन्ध करता है। तीसका नहीं। कारण १. ता०प्रतौ 'ताधे व' इति पाठः। २. आ०प्रतो, 'पणुवीसदिणामाए' इति पाठः । ३. ता०प्रतौ 'अप्पाओ जहः' इति पाठः। ४. ता०प्रतौ 'हाणी० उ० (१) कस्स' इति पाठः। ५. ता०प्रती 'तीसदिणामाए बंधगो' जादो तस्से उक्क.' इति पाठः। ६. ता.आप्रत्योः 'अवहिदबंधगा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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