________________
२०६
महाबँधे पदेसबंधाहियारे
बंदि णो तीसं । केण कारणेण ? तं चैव कारणं । एदेण कारणेण अट्ठावीसदिणामाओ बंधमाण ० उक्क० अवट्ठा० णो' तीसं बंधदि ।
२३४. चदुसंठा० - पंच संघ० उक० वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविधबंधगो तप्पाअग्गजह • जोगट्टाणादो उक्क० जोगट्ठाणं गदो एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविधबंगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो सत्तविधनं० उक्क० जोगी मदो असणिपंचिंदियपजत्तएसु उववण्णो तप्पाऔगजह० पडिदो तीसदिणामा सह सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स ० १ यो सत्तविधबंधगो उक्क० जोगी पडिभग्गो तप्पाऔग्गजहण्णगे पडिदो अविधबंधगो जादो । ताघे ताओ चैव एगुणतीसदिणामाओं बंधदि णो तीसं । केण कारणेण ? तं चैव कारणं ।
I
२३५. ओरालियअंगो० असंपत्तसे० उक० वड्डी अवट्ठाणं च पंचिदियभंगो । उक्क० हाणी बेइंदियअपज्जत्तगेसु उववण्णो तप्पा० जह० जोगट्ठाणे पडिदो तीस दिणामाए बंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । पर० - उस्सा०-पजत्त-थिर - सुभ० उक्क०
क्या है ? वही पूर्वोक्त कारण है। इस कारण नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जीव उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है; तीसका बन्ध करनेवाला नहीं ।
२३४. चार संस्थान और पाँच संहननकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकार के कर्मों का बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करने लगा वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मर कर असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न हुआ और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त होकर आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करने लगा, वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । उस समय वह नामकर्मकी उन्हीं उनतीस प्रकृतियोंका बन्ध करता है। तीसका बन्ध नहीं करता । कारण क्या है ? वही पूर्वोक्त कारण है ।
२३५. औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और असम्प्राप्तासृपाटिका संहननको उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग पचेन्द्रियोंके समान है । उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियों का बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । परघात, उच्छ्रास, पर्याप्त, स्थिर, और शुभकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है । उत्कृष्ट हानिका
१. आ०प्रतौ 'उक्क० असाद० णो' इति पाठः । २. ता० आ० प्रत्योः 'जह० जोग० गदो उक्क०' इति पाठः ! ३. ता०प्रतौ 'सत्तविधधो ( धगो ) जादो' इति पाठः । ४ ता० प्रतौ णा [ मा ] ओ' इति पाठः । ५ ता०आ० प्रत्यो: 'जह० जोगी पडिदो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org