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________________ २०४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे ट्ठाणादो उक्कस्सयं जोगट्ठाणं गदो पणवीसदिणामाए सह सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो सत्तविधवं उक्क जोगी मदो मणुसअपञ्जत्तएसु उववण्णो तप्पाऑग्गजह० पडिदो एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविधधगो जादो तस्स उक्क. हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स० ? यो सत्तविध० उक०जोगी पडिभग्गो तप्पा ऑग्गजह. जोगट्ठाणे पडिदो अडविधबंधगो जादो । ताधे ताओ चेव पणवीसदिणामाए बंधदि णो एगुणतीसं । केण कारणेण १ तं चेव कारणं यं तिरिक्खगदिणामाए भणिदं । एदेण कारणेण पणवीसदिणामाए बंधमाणगस्स उक० अवट्ठाणं गो एगुणतीसं । २३१. एइंदिय-थावर० तिरिक्खगदिभंगो। णवरि' हाणी मदो छव्वीसदिणामाए। बीइंदि०-तीइंदि०-चदुरिंदि०-पंचिंदि० तस० ] उक्क० वड्डी कस्स० १ मणुसगदिभंगो । णवरि उक० हाणी कस्स० ? बेइंदि०-तेइ दि०-चदुरिंदि०-पंचिंदिएसु उववण्णो तीसदिणामाए बंधगो तस्स उक्क० हाणी। उक० अवट्ठाणं कस्स० ? यो सत्तविधबंधगो उक्क०जोगी पडिभम्गो तप्पाङग्ग. पडिदो अट्ठविधबंधगो जादो। प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कमाका बन्ध करने लगा, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और मनुष्य अपयोप्तकीमें उत्पन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगको प्राप्त हुआ और नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा,वह उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा, वह उसके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। उस समय वह जीव नामकर्मकी उन्हीं पच्चीस प्रकृतियोंका बन्ध करता है। उनतीस प्रकृतियोंका बन्ध नहीं करता। कारण क्या है? वही कारण है जो तिर्यश्चगतिनामके सम्बन्धमें कह आये हैं। इस कारणसे नामकर्मको पच्चीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जीव मनुष्यगतिके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। उनतीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला नहीं। २३१. एकेन्द्रियजाति, और स्थावर प्रकृतिका भङ्ग तिर्यश्चगतिके समान है। इतनी विशेषता है कि जो मरनेके बाद नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंका बन्ध करता है,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, पच्छेन्द्रिय न्द्रियजाति और उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? इनका भङ्ग मनुष्यगतिके समान है। इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट हानिका स्वामो कौन है ? जो द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पश्चेन्द्रियों में उत्पन्न होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे सुक जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्यायोग्य जघन्य योगके साथ आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा,वह इनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । वह उस समय नामकर्मको पञ्चीस प्रकृतियोंका १. ताप्रती 'एईदि. थावरतिरिक्खगदि णवरि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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