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पदणिक्खेवे सामिसं
२०३ २२६. तिरिक्खगदिणामाए उक्क० वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविध० तप्पाओग्गजहण्णगादो जोगट्ठाणादो उक्कस्सयं जोगट्ठाणं गदो तदो तेवीसदिणामाए सह सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? जो सत्तविधबंधगो उक्कस्सजोगी मदो सुहुमणिगोदजीवअपजत्तगेसु उववण्णो तप्पाऑग्गजह० पडिदो तीसदिणामाए बंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । उक० अवट्ठाणं कस्स० ? जो सत्तविधबंधगो उक्कस्सजोगी पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णजोगट्ठाणे पडिदो अढविधबंधगो जादो । ताधे ताओ चेव तेवीसदिणामाए बंधदि णो तीसं। केण' कारणेण ? आउगबंधस्स अभासे जाओ चेव णामाओ ताओ चेव बंधदि याव आउगवंधगद्धा पुण्णो त्ति । अण्णं च पुण पुरदो अंतोमुहुत्तमग्गदो अंतोमुहुत्तं णीचा । एदेण कारणेण तेवीसदिणामाओ बंधमाणगस्स उक्कस्सयं अवट्ठाणं णो तीसा । एवं ओरालि०-तेजा०-क०-हुंड ०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु०अगु०-उप०-अथिर-असुभ-दूभग-अणादे०-अजस०-णिमि० तिरिक्खगदिभंगो कादयो ।
२३०. मणुसग० उक्क० वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविधबंधगो जहण्णगादो जोगस्थानको प्राप्त हुआ और आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा वही अनन्तर समयमें उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है।
____२२६. तिर्यश्चगति नामकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर अनन्तर नामकर्मकी तेईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीवोंमें उत्पन्न होकर तथा तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त कर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा,वह उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उसके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका
ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा वह उसके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । उस समय वह नामकर्मकी उन्हीं तेईस प्रकृतियोंका बन्ध करता है तीस प्रकृतियोंका बन्ध नहीं करता क्योंकि आयुकर्मका बन्ध प्रारम्भ होते समय नामकर्मकी जिन प्रकृतियोंका बन्ध करता है, आयुबन्धके कालके पूर्ण होने तक उन्हीं प्रकृतियोंका बन्ध करता रहता है । और भी अन्तर्मुहूर्त पूर्वसे अन्तर्मुहूर्त आगे तक उन्हीं प्रकृतियोंका बन्ध करता है। इस कारणसे नामकर्मकी तेईस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगतिके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है; तीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला नहीं । इसीप्रकार औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति और निर्माणका भङ्ग तिर्यश्चगतिके समान कहना चाहिए ।
२३०. मनुष्यगतिकी उत्कृष्ट प्रदेशवृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जो जीव जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी पञ्चीस
१. ताप्रतौ ‘णो ति संकेण' इति पाटः। २. आ०प्रतौ 'जाओ चेव बंधदि' इति पाठः । ३. ता०प्रतौ 'पुणो त्ति अण्ण च' इति पाठः ।
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