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________________ २०२ महाबंधे पदेसबंधाहियारे आउगं बंधदि । एवं एदं कालं सम्मादिट्ठी सम्मादिट्ठी चेव, मिच्छदिट्ठी मिच्छादिट्ठी चेव, यदि सासणो सासणो चेव, यदि असंजदो असंजदो चेव, यदि संजदासंजदो संजदासंजदो चेव', यदि संजदो संजदो चेव । एदं कारणं अट्ठस्स हेदू कित्तिदं । एदं कारणं दंसणावरणस्स च पंचण्णं पगदीणं मिच्छत्त-बारसक० एदेसिं कम्माणं यथोपदिवाणं उक्कस्सपदणिक्खेवसामित्तसाधणत्थं यो संसयो तं संसयं णिस्संसयं काहिदि त्ति एदं कारणं हेदू कित्तिदं । चदुण्णं आउगाणं उक्क० वड्डी कस्स० ? यो० अट्ठविधबंधगो तप्पाऑग्गजहण्णजोगट्ठाणादो उक्कस्सयं जोगट्ठाणं गदो तस्स उक० वड्डी। उक्क० हाणी कस्स० ? यो अढविधबंधगो उक्क०जोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजह• जोगट्ठाणे पडिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक० अवट्ठाणं । एवं आउगस्स सव्वत्थ याव अणाहारग त्ति णेदव्वं । २२८. णिरयगदि-देवगदि-वेउवि०-वेउ अंगो०-दोआणु० उक्क० वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविधबंधगो तप्पाओग्गजह जोगट्ठाणादो उक्क० जोगट्ठाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? जो सत्तविधबंधगो उकस्सगादो जोगट्ठाणादो तप्पाऑग्गजहण्णजोगट्ठाणे पडिदो अट्ठविधबंधगो तस्स उक्क० हाणी। तस्सेव से काले उक० अवट्ठाणं । सम्यग्दृष्टि ही रहता है, मिथ्यादृष्टि है तो मिथ्यादृष्टि ही रहता है, यदि सासादनसम्यग्दृष्टि है तो सासादनसम्यग्दृष्टि ही रहता है, यदि असंयतसम्यग्दृष्टि है तो असंयतसम्यग्दृष्टि ही रहता है, यदि संयतासंयत है तो संयतासंयत ही रहता है और यदि संयत है तो संयत ही रहता है। इस कारण विवक्षित विषयका हेतु कहा है। तथा इसी कारण यथोपदिष्ट दर्शनावरणकी पाँच प्रकृतियाँ, मिथ्यात्व और बारह कषाय इन कर्मों के उत्कृष्ट पदनिक्षेप सम्बन्धी स्वामित्वको सिद्ध करनेके लिए जो संशय है उस संशयको निःसंशय कर देता है । इस कारण हेतु कहा है। चार आयुओंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त हुआ है,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा वह अनन्तर समयमें उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। आयुकर्मका सर्वत्र अनाहारक मार्गणा तक इसी प्रकार स्वामित्व जानना चाहिए । २२८. नरकगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और दोआनुपूर्वीकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करने लगा वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला जो जीव उत्कृष्ट योगस्थानसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योग १. ताप्रतौ 'मिच्छादिट्ठी चेव यदि असंजदो असंजदो चेव यदि संजदासजदा संजदासंजदा चेव' इति पाठः । २. ता०प्रतौ च प (पं) चणं' इति पाठः। ३. आ०-प्रतौ 'तप्पाओग्गजहण्णजोगहाणं' इति पाठः । ४. ता०प्रतौ 'उक्कस्सगादो पडिदो तप्पाओग्गजहण्ण [ जो गहाणे' आप्रतौ 'उकस्सगादो जोगहाणादो पडिदो तप्पाओग्गजहण्णजोगहाणे' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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