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महाबंधे पदेसबंधाहियारे बं० विसे० । सादासाद०-सत्तणोक०-चदुआउ०-चदुगदि-पंचजादि-वेउब्विय०-छस्संठादोअंगो०-छस्संघ०-चदुआणु०-पर-उस्सा०-आदाउजो०-दोविहा०-तसादिदसयुग०दोगोद० सव्वत्थोवा' अवट्ठि० । अवत्त० असं गु० । अप्प० असं०गु० । भुज. विसे० । आहारदुगं सव्वत्थोवा अवढि० । अवत्त० संखेंजगु० । अप्प० संखे०गु० । भुज० विसे । तित्थ० सव्वत्थोवा अवत्त । अवढि० असं०गु० । अप्प० असं०गु० । भुज० विसे । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरा०-लोभक०-अचक्खु०-भवसि०-आहारग ति ।
२१२. णिरएसु धुविगाणं सव्वत्थोवा अवढि० । अप्पद० असं०गु० । भुज० विसे । थीणगिद्धि०३-मिच्छर-अणंताणु०४-तित्थ० सव्वत्थोवा अवत्त । अवढि० असंखेंगु० । अप्प० असं०गु० । भुज. विसे० । सेसाणं ओघं साद०भंगो । मणुसाउ० ओघं आहारसरीरभंगो। एवं सव्वणिरयाणं । णवरि सत्तमाए दोगदि-दोआणु०दोगोद० थी णगिद्धिभंगो।
२१३. तिरिक्खेसु धुवियाणं णिरयभंगो। सेसाणं ओघमंगो। सव्वपंचिंदि०तिरि० णिरयभंगो। णवरि मणुसाउ० ओघं आहारसरीरभंगो। अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, चार आयु, चार गति, पाँच जाति, वैक्रियिकशरीर, छह संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, चार आनुपूर्वी, परघात, उच्छास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, सादि दस युगल और दो गोत्रके अवस्थितपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अबक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । आहारकद्विकके अवस्थितपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे अल्परपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। तीर्थकर प्रकृतिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार ओघके समान काययोगी,औदारिककाययोगी, लोभकषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवोंमें जानना चाहिए।
२१२. नारकियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके अवस्थितपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क और तीर्थङ्करप्रकृतिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनमें अवस्थितपदके बन्धक असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघसे सातावेदनीयके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग ओघसे आहारकशरीरके समान है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें दो गति, दो आनुपूर्वी और दो गोत्रका भङ्ग स्त्यानगृद्धिके समान है।
२१३. तिर्यश्चोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग नारकियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका
१. आ०प्रतौ 'दोगदि० सव्वत्थोवा' इति पाठः।
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