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भुजगारबंधे फोसणाणुगमो १७६. मणुसेसु पंचिंदियतिरिक्खभंगो । णवरि णिरयगदि-देवगदिसंजुत्ताणं रज्जू ण लभदि।
.१८०. देवेसु धुवियाणं सव्वपदा अट्ठ-णव० । थीणगि०३-अणंताणु०४-णस०तिरिक्ख०-एइंदि०-हुड०-तिरिक्खाणु०-थावर-दृभग-अणादें-णीचा० तिण्णिपदा अट्टणव०। अवत्त० अट्ठचों । सादादिदस०-उज्जो०-जस०-अजस०-मिच्छ० सव्वपदा अट्ठ-णव० । सेसाणं सव्वपदा अट्ठचौ० । एवं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं । प्राप्त होता है और इनका क्षेत्र भी इतना ही है, इसलिए इनके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । यहाँ सब अपर्याप्त आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ कही हैं उनमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान स्पर्शन बन जाता है, इसलिए उनमें इनके समान स्पर्शनके जाननेकी सूचना की है । मात्र अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में मनुष्यगतिचतुष्कका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनमें इन चार प्रकृतियोंके बन्धका निषेध किया है । तथा वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे इनमें लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शनके स्थानमें उक्त प्रमाण स्पर्शन करना चाहिए।
१७६. तीन प्रकारके मनुष्योंमें पञ्चेन्द्रिय तियञ्चोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें नरकगति और देवगति संयुक्त प्रकृतियोंका स्पर्शन रज्जुओंमें नहीं प्राप्त होता।
विशेषार्थ—पहले पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंमें स्पर्शन बतला आये हैं । तीन प्रकारके मनुष्यों में यह स्पर्शन अविकल घटित हो जाता है, इसलिए इनमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान स्पर्शन जाननेको सूचना की है । पर मनुष्यत्रिकमें नरकगति और देवगतिसंयुक्त नामकर्म की जितनी प्रकृतियाँ बंधती हैं उनके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, क्योंकि इन तीन प्रकारके मनुष्योंके नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुद्धात करनेपर भी उस समय प्राप्त हुआ सब स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है, इसलिए यहाँ नरकगति और देवगतिसंयुक्त प्रकृतियोंका सब पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन राजुओंमें नहीं प्राप्त होता है,ऐसा कहा है।
१८०. देवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ वटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय आदि दस तथा उद्योत, यश कीर्ति, अयश-कीर्ति और मिथ्यात्वके सब पदोंके बन्धक जीवोंने सनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंमें अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिए।
विशेषार्थ-देवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण है । ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके सब पदोंकी अपेक्षा, स्त्यानगृद्धि आदिके तीन पदोंकी अपेक्षा और सातावेदनीय आदिके सब पदोंकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः यह उक्त
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