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________________ १५८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे थिराथिर-सुभासुभ० सव्वपदा लोगस्स असंखें सव्वलो० । मिच्छ० तिण्णिपदा णqसगभंगो । अवत्त० सत्तौँ । इत्थि० तिण्णिपदा दिवड्डचों । अवत्त० खेत्तभंगो । पुरिस०दोगदि०-समचदु०-दोआणु०-दोविहा०-सुभग०-दोसर-आदें-उच्चा० तिण्णपदा छच्चों । अवत्त० खेत्तभंगो। चदुआउ०-मणुसग०-तिण्णिजादि-चदुसंठा०-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०मणुसाणु०-आदाव० सव्वपदा खेत्तभंगो। पंचिंदि०-वेउन्वि०-वेउवि अंगो०-तस० तिण्णिपदा बारह० । अवत्त० खेत्तभंगो। उजो०-जस० सव्वपदा सत्तचौ० । बादर० तिण्णिपदा तेरह ० । अवत्त० खेत्तभंगो । अजस० तिण्णिपदा लोग० असंखें. सव्वलो० । अवत्त० सत्तचों। के सब पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग नपुंसकवेदके समान है। तथा इसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेदके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सनालीके कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पुरुषवेद, दो गति, समचतुरस्रसंस्थान, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंका बन्धक जीवोंने सनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका पर्शन किया है। तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। चार आयु, मनुष्यगति, तीन जाति, चार संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और आतपके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पञ्चेन्द्रियजाति वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और उसके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उद्योत और यशःकीर्तिके सब पढ़ोंके बन्धक जीवांने त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने वसनालीके कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अयशःकीर्तिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ—पञ्चेन्द्रियतिर्यश्चत्रिकका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण होनेसे इनमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा है। ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियाँ ये हैं-पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, अन्तकी आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तराय । स्त्यानगृद्धित्रिक आदिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन भी उक्त प्रकारसे लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण घटित कर लेना चाहिए । इनका अवक्तव्यपद मारणान्तिक समुद्धात और उपपाद पदके समय सम्भव न होनेसे इसकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । सातावेदनीय आदिके चारों पद मारणान्तिक समुद्धात और उपपादपदके समय भी सम्भव हैं, इसलिए इनके चारों पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण कहा है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पशन इसीप्रकार घटित कर लेना चाहिए। तथा इसका अवक्तव्य पद ऊपर कुछ कम सात राजूप्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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