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महाबंध पदे सबंधाहिया रे
१७५. णिरयेसु धुवियाणं तिण्णि पदा छच्चों० । सादादीणं तेरहपगदीणं सव्वपदा छच्चों । दोआउ०- मणुस ०- मणुसाणु ० - तित्थ ० - उच्चा० सव्वपदा खत्तभंगो । सेसाणं तिष्णिपदा छच्चों६० । अवत्त ० त्तभंगो। णवरि मिच्छ० अवत्त० पंचच । एवं अप्पप्पणी फोसणं णेदव्वं ।
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करनेवाले जो मनुष्य द्वितीय और तृतीय नरक में उत्पन्न होते हैं उनके भी सम्भव है । इन सबका स्पर्शन विचार करनेपर लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण. ही प्राप्त होता है, अतः यहाँ इसके अवक्तव्यपदका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है।
१७५. नारकियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनाली के कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय आदि तेरह प्रकृतियों के सब पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनाली के कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालोके कुछ काम पाँच बढे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इस प्रकार अपना-अपना स्पर्शन ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ — नारकियों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पद ही होते हैं और नारकियों का स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण है, इसलिए इन प्रकृतियोंके उक्त पदों की अपेक्षा उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। यहाँ ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियाँ ये हैं- पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, निर्माण और पाँच अन्तराय । सातावेदनीय आदि तेरह प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भी यही स्पर्शन प्राप्त होता है, क्योंकि इनके चारों पद नारकियोंके मारणान्तिक और उपपादके समय भी सम्भव हैं । सातावेदनीय आदि तेरह प्रकृतियाँ ये हैं- सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, उद्योत, और स्थिर आदि तीन युगल । मूलमें शेष पद द्वारा आगे त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनम्तानुबन्धीचतुष्क, तीन वेद, तिर्यञ्चगति, छह संस्थान, छह संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके तीन युगल और नीचगोत्रके भुजगार आदि तीन पदोंके बन्धक जीवोंका इसी प्रकार स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। तथा इनका अवक्तव्यपद स्वस्थानमें ही होता है, इसलिए इस अपेक्षा से स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । मात्र मिथ्यात्वका अवक्तव्यपद छठे नरक तकके नारकियोंके मारणान्तिक समुद्धात के समय भी सम्भव है, इसलिए इसके इस पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अलगसे त्रसनालीके कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। अब रहीं दो आयु आदि प्रकृतियाँ सो इनमेंसे दो आयुका बन्ध तो मारणान्तिक समुद्धात और उपपादपदके समय होता ही नहीं। शेष चार प्रकृतियोंके तीन पदोंका बन्ध मारणान्तिक समुद्धातके समय भी हो सकता है, पर वह मनुष्यों में मारणान्तिक समुद्वातके समय ही सम्भव है। तथा इनके अवक्तव्य पदका बन्ध ऐसे समय भी सम्भव नहीं है, इसलिए इनके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । प्रथमादि सब नरकोंमें अपनाअपना स्पर्शन जानकर वह इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए ।
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