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________________ १५४ महाधे पदेसबंधाहियारे भय-दुर्गु० - तेजा क० वण्ण०४- अगु० - उप० णिमि० पंचंत० भुज० अप्प० अवट्ठि० केव डि० खतं फोसिदं ? सव्वलोगो' । अवत्त० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे | थीणगि ०३ - मिच्छ०- अनंताणु०४ तिष्णिपदा सव्वलो० । अवत्त० अट्ठचोंह ० । णवरि मिच्छ० अट्ठ-बारह० । अपच्चक्खाण०४ तिष्णिपदा सव्वलो० । अवत्त० छच्चों० । सादादीणं चत्तारिपदा सव्वलो० । दोआउ० आहारदुगुं सन्त्रपदा खत्तभंगो | मणुसाउ० सव्चपदा अडच० सव्वलो० । दोगदि-दोआणु० तिष्णिपदा छनो६० । अवत्त० खेतभंगो । ओरालि० तिष्णिपदा सव्वलो० । अवत्त० बारहचों० । वेउव्वि० - वेउव्वि०अंगो० तिण्णिपदा बारहचों० । अवत्त० खत्तभंगो । तित्थ० तिष्णिपदा अडचों० । अवत्त० खेत्तभंगो । अगुरुलघुचतुष्क, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तराय के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धोचतुष्कके तीन पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। इनके अवक्तव्यपदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? नालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व के अवक्तव्यपदवाले जीवोंने सनाली के कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन पदवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। तथा अवक्तव्यपदवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम छह बढे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय आदिके चार पदोंके बन्धक जीवोंने सव लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मनुष्यायुके सत्र पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्शन किया है। दो गति और दो आनुपूर्वीके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । औदारिकशरीर के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। तथा इसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने सनाली के कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीरआङ्गोपाङ्गके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है | तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रभाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । विशेषार्थ - ओघसे पाँच ज्ञानावरणादि प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपद यथासम्भव एकेन्द्रिय आदि सब जीवोंके सम्भव हैं, इसलिए इन प्रकृतियोंके उक्त पदवाले जीवोंका सर्व लोक स्पर्शन कहा है । तथा उनका अवक्तव्यपद उपशमश्रेणिसे गिरनेवाले मनुष्यों और मनुष्यनियोंके तथा इनकी बन्धव्युच्छित्तिवाले ऐसे जीवोंके मरकर देव होनेपर प्रथम समय में १ ता० आ० प्रत्योः 'सव्वलोगे इति पाठः । २ आ० प्रतौ 'ओरालि० सव्वपदा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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