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________________ १३६ भुजगारबंधे अंतरकालाणुगमो अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पगदिअंतरं। दो आउ० तिण्णिपदा जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० कायट्ठिदी० । देवाउ० अवढि० जह० ए०, उक्क० पलिदोवमसद० । भुज०-अप्प० जह० ए०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अट्ठावणं' पलिदो० पुव्वकोडिपुध० । णिरयगदि-देवगदि-तिण्णिजादि-वेउवि०-वेउवि०अंगो०-णिरय०-देवाणुपु०सुहुम०-अपञ्ज०-साधार० भुज-अप्प० जह• एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पणवण्णं पलि० सादि० । अवढि० जह० एग०, उक्क० कायट्ठिदी० । मणुस०-ओरा०अंगो०-वजरि०-मणुसाणु० भुज०-अप्प० जह• एग०, उक्क० तिण्णिपलि० देसू० । अवढि० जह० एग०, उक्क० कायद्विदी० । अवत्त० जह० अंतो०, उक० पणवणं पलिदो० देसू०। ओरा० भुज०-अप्प० ज० एग०, उक० तिण्णि पलिदो० देसू० । अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० कायट्टिदी० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क. पणवणं पलिदो० सादि० । पर०-उस्सा०-बादर-पज्जत्त-पत्ते भुज-अप्प०-अवट्ठि० णाणा०भंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पणवण्णं पलि० सादि० । आहारदुगं तिण्णि पदा जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० कायट्ठिदी० । तित्थ० दो पदा जह० एग०, अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। दो आयुओंके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और चारोंका उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। देवायुके अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सौ पल्य पृथक्त्वप्रमाण है। भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और तीनोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अट्ठावन पल्य है । नरकगति, देवगति, तीन जाति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, नरकगत्यानुपूर्वी, देवगत्यानुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचवन पल्य है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। मनुष्यगति औदारिकशरीरआङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ तीन पल्य है । अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण हैं। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है । औदारिकशरीरके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है । अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहते है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचवन पल्य है। परघात, उच्छास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अतमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचवन पल्य है। आहारकद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है । तीर्थङ्कर प्रकृतिके दो पदोंका जघन्य १ ता०प्रतौ 'दोआउ० तिण्णिपदा० ज० ए० अवत्त० ज० अंतो० उ०-कायहिदि । देवाउ० अवहि० ज० ए० उ० पलिदोवमसदपुध । भुज अप्प० ज० ए० अवत्त० ज० अंतो० उ० अद्यावणं' आ०प्रतौ दोआउ० तिष्णिपदा जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अट्ठावण्णं, इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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