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________________ १३८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे १६४. इत्थिवेदेसु पंचणा०-चदुदंसणा०-चदुसंज-पंचंत० भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि० जह० एग०, उक० कायट्ठिदी०। थीण गिद्धि०३मिच्छ०-अणंताणु०४ भुज-अप्प० जह० एग०, उक्क. पणवण्णं पलि० देसू० । अवढि० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० कायट्ठिदी। णिहा-पयला-भयदुगुं०-तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि० भुज०-अप्प०-अवढि० णाणा०भंगो । अवत्त० णत्थि. अंतरं । दोवेदणी०--चदुणोक०-थिरादितिण्णियुग० भुज०-अप्प०अवढि० णाणाभंगो। अवत्त० जह० उक० अंतो० । अट्ठकसा० भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडी देसू० । अवढि० णाणाभंगो । अवत्त० जह• अंतो०. उक्क० कायट्ठिदी० । इथि० मिच्छत्तभंगो। णवरि अवत्त० जह• अंतो०, उक्क. पणवणं पलिदो० देसू० । एवं इत्थिवेदभंगो णवूस०-तिरिक्ख०-एइंदि०-पंचसंठा०-पंचसंघ०तिरिक्खाणु०-आदाउजो०-अप्पसत्थ०-थावर-दूभग-दुस्सर--अणादें-णीचा० । पुरिस०पंचिंदि०-समचदु०-पसत्थ०-तस-सुभग-सुस्सर-आदे०-उच्चा० तिण्णिपदा० णाणा भंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० देसू० । णिरयाउ०तिण्णिपदा० जह० एग०, १६४. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। निद्रा, प्रचला, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है । दो वेदनीय, चार नोकषाय और स्थिर आदि तीन युगलके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। आठ कषायोंके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण है। अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। स्त्रीवेदका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है। इसी प्रकार स्त्रीवेदके समान नपुंसकवेद, तियश्चगति, एकेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका भङ्ग जानना चाहिए । पुरुषवेद, पञ्चेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका अन्तर अन्तमु हूत है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है। नरकायुके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और सबका उत्कृष्ट १ ता०प्रतौ 'पंचणा० चदुसंज०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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