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________________ १२८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे १५६. एइंदिएसु धुवियाणं भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवहि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखेंजदिभागो, बादरेसु' अंगुल० असंखें, वादरपजत्तगेसु संखेंजाणि वाससहस्साणि । एवं मणुसगदितिगस्स वि ओघ । बादरेसु कम्मदिट्ठी०, पजत्तएसु संखेंजाणि वाससह । तिरिक्खगदितिगं भुज०-अप्प०-अवढि० णाणाभंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क. असंखेंजा लोगा कम्मट्ठिदी संखेंजाणि वाससह० । सेसाणं परियत्तमाणियाणं भुज०-अप्प०-अवढि० णाणा०भंगो। अवत्त० जह० उक्क० अंतो० । तिरिक्खाउ० दोण्णिपदा जह० एग०, अवत्त० ज० अंतो०, उक्क० बावीसं वाससह० सादि० । अवढि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें. अंगुल० असंखें० संखेंजाणि वाससह । मणुसाउ० तिण्णि पदा जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो० उ० सव्वपदाणं सत्तवाससह ० सादि० । सुहुमेइंदि० एइंदियभंगो । णवरि दोआउ० पंचिंदि तिरि०अपज्जत्तभंगो। णवरि तिरिक्खाउ० अवढि० ओघं । एदेण कमेण विगलिंदिय-पंचकायाणं अंतरं णेदव्वं । १५६. एकेन्द्रियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रोणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। बादरोंमें अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है और बादर पर्याप्तकोंमें संख्यात हजार वर्ष है। इसी प्रकार मनुष्यगतित्रिकका भी भङ्ग ओघके समान है। बादरों में कर्मस्थितिप्रमाण है और बादर पर्याप्तकोंमें संख्यात हजार वर्ष है। तिर्यश्चगतित्रिकके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है, बादरों में कर्मस्थितिप्रमाण है और बादर पर्याप्तकोंमें संख्यात हजार वर्ष है । शेष परावर्तमान प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । तिर्यश्चायुके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर साधिक बाईस हजार वर्ष है । अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकेन्द्रियों में जगणिके असंख्यातवे भागप्रमाण, बादरोमें अङ्गुलके असंख्यातव भागप्रमाण और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकों में संख्यात हजार वर्ष प्रमाण है। मनुष्यायुके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष प्रमाण है। सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें एकेन्द्रियोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें दो आयुओंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंके समान है। इतनी और विशेषता है कि इनमें तिर्यश्चायुके अवस्थितपदका भङ्ग ओघके समान है। इस क्रमसे विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंमें अन्तरकाल ले जाना चाहिए। १ ता०-आ०प्रत्योः 'असंखेजगु० । बादरेसु' इति पाठः । २ आ०प्रतौ 'संखेजाणि एवं" इति पाठः। ३ ता०प्रप्तौ 'अंगो० (तो०) तिरिक्खाउ० तिण्णिपदा०' आ०प्रतौ 'अंतो। तिरिक्खाउ० तिण्णिपदा' इति पाठः। ४ आ०प्रतौ 'जह० एग०, उक्क० अंगुल. असंखे० सेढीए असंखे० संखेजाणि' इति पाठः । ५ ता. आ०प्रत्योः जह० एग० उ० अवत्त०' इति पाठः। ६ आ० प्रतौ 'उ. सत्तवाससह०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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