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________________ १०८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे सामित्ताणुगमो १४७. सामित्ताणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे०। ओघे० पंचणा०-छदंस०चदुसंज०-भय-दुगु-तेजा०-क०--वण्ण०४-अगु०--उप०-णिमि०-पंचंत. भुज०-अप्पद०अवट्ठिबंधगो को होदि ? अण्णदरो । अवत्त० कस्स० ? अण्णद० उवसामयस्स परिवदमाणगस्स मणुसस्स वा मणुसिए वा पढमसमयदेवस्स वा । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०अणंताणु०४ तिण्णि पदा कस्स० ? अण्णद० । अवत्त० कस्स० ? अण्णद. संजमादो वा संजमासंजमादो वा सम्मत्तादो वा परिवदमाणयस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स वा सासणसम्मादिहिस्स वा । णवरि मिच्छ० अवत्त० [सम्मामिच्छत्तादो ] सासणसम्मत्तादो वा परिवदमाणय० मिच्छादिहिस्स । सादादीणं सव्वपगदीणं परियत्तमाणीणं तिणि पदा कस्स० ? अण्ण । अवत्त० कस्स० ! अण्ण० परियत्तमाणयस्स पढमसमयबंधयस्स । अपचक्खाण०४ तिण्णि पदा कस्स०? अण्ण० । अवत्त० कस्स० ? अण्ण० संजमादो वा० संजमासंजमादो वा परिवदमा पढमसमयमिच्छा० वा सासण० वा [सम्मामि० वा] असंजदसम्मा० वा । एवं पच्चक्खाण०४ । णवरि संजमादो परिवदमाणयस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स वा सासण० वा सम्मामि० वा असंजदसम्मादि० स्वामित्वानुगम १४७. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणीसे गिरनेवाला अन्यतर मनुष्य, मनुष्यिनो और इनको बन्धव्युच्छित्तिके बाद मर कर उत्पन्न हुआ प्रथम समयवर्ती देव इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्वित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव इनके तीन पदोंका स्वामी है। इनके अवक्तव्य पदका स्वामी कौन है ? संयमसे, संयमासंयामसे और सम्यक्त्वसे गिरनेवाला अन्यतर प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव इनके अवक्तव्यपदका स्वामी है। इतनी विषेशता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदका स्वामी सम्यग्मिथ्यात्व और सासादनसम्यक्त्वसे भी गिरनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव ही होता है। परावर्तमान सातावेदनीय आदि सब प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव इनके तीन पदोंका स्वामी है। इनके अवक्तव्यपदका स्वामी कौन है ? परावर्तन करके प्रथम समयमें बन्ध करनेवाला अन्यतर जीव इनके अवक्तव्यपदका स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव इनके तीन पदोंका स्वामी है। इनके अवक्तव्य पदका स्वामी कौन है ? संयमसे और संयमासंयमसे गिर कर जो मिथ्याष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि हुआ है, प्रथम समयवर्ती उक्त गुणस्थानोंवाला वह जीव उक्त प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदका स्वामी है। इसी प्रकार अर्थात् अप्रत्याख्यानवरणचतुष्कके समान प्रत्याख्यानावरण चतुष्कके चार पदोंका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो संयमसे गिर कर प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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