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महाबंधे पदेसबंधाहियारे
पंचिदियतिरिक्खपज ० मूलोघं याव देवगदि० ज० प० संखैअगु० । णिरयग० ज० प० असं० गु० । अण्णदरे आउ० ज० प० संजगु० । पंचिंदियतिरिक्खजोगिणीसु मूलोघं याव वेउ० ज० प० असं० गु० । तदो णिरयग० देवग० ज० प० संजगु० । अण्णदरे आउ० ज० प० संखेजगुः । सव्वअपजत्तयाणं च सव्वएइंदिय-विगलिंदियपंचकायाणं णिरयभंगो। णवरि तेउवाऊणं मणुसगदिचदुकं वञ |
१२६. मणुसेस ओघो याव तिरिक्ख मणुसाऊणं ज० प० असं० गु० । तदो आहार० ज० प० असं०गु० । णिरयगदि० ज० प० संखेअगु० । णिरय-देवाऊणं ज० प० संखेजगु० । मणुसपञ्जत्तेसु एसेव भंगो याव देवगदि० ज० प० | तदो आहार० ज० प० असं०गु० । णिरय० जह० प० संखेजगु० । अण्णदरे आउ० ज० पदे० संखेजगु ० | मणुसिणीसुं एसेव गंगो याव सादासादादीण ज० प० विसे० । तदो वेउ० ज० प० असंखजगु० । आहार० ज० प० विसे० । देवगदि० ज० प० संजगु० । णिरयगदि० ज० प० विसे० । अण्णदरे आउगे० ज० प० संखेज्जगु ० ।
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है । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकोंमें देवगतिका जघन्य प्रदेशाम संख्यातगुणा है - इस स्थानके प्राप्त होने तक मूलोघ के समान भङ्ग है | उससे आगे नरकगतिका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे अन्यतर आयुका जघन्य प्रदेशाप्र संख्यातगुणा है | पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियोंमें वैक्रियकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुण है - इस स्थान प्राप्त होने तक मूलोघके समान भंग है। उससे आगे नरकगति और देवगतिका जघन्य प्रदेशाय संख्यातगुणा है। उससे अन्यतर आयुका जघन्य प्रदेशाय संख्यातगुणा है । सब अपर्याप्तक, सब एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवों में नारकियोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में मनुष्यगति चतुष्कको छोड़कर अल्पबहुत्व कहना चाहिए ।
१२६. मनुष्यों में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य प्रदेशाय असंख्यातगुणा है - इस स्थानके प्राप्त होने तक ओघ के समान भङ्ग है । उससे आगे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाम असंख्यातगुणा है । उससे नरकगतिका जघन्य प्रदेशात्र संख्यातगुणा है। उससे नरकायु और देवायुका जघन्य प्रदेशाय संख्यातगुणा है । मनुष्यपर्याप्तकों में देवगतिका जघन्य प्रदेशाय सम्बन्धी अल्पबहुत्व प्राप्त होने तक यही भङ्ग है । उससे आगे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशा असंख्यातगुणा है | उससे नरकगतिका जघन्य प्रदेशाम संख्यातगुणा है। उससे अन्यतर आयुका जघन्य प्रदेशाम संख्यातगुणा है । मनुष्यिनियों में सातावेदनीय और असातावेदनीयका जघन्य प्रदेशा विशेष अधिक है इस स्थानके प्राप्त होने तक यही भङ्ग है । उससे आगे वैक्रियकशरीरका जघन्य प्रदेशा असंख्यातगुणा है। उससे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे देवगतिका जघन्य प्रदेशाय संख्यातगुणा है। उससे नरकगतिका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक । उससे अन्यतर आयुका जघन्य प्रदेशाम संख्यातगुणा है ।
१. ता० प्रतौ 'एवं पंचिंदिय-तिरिक्ख पंचि तिरिक्ख-पज्ज० मूलोत्रं' 'णिरय ० ज ० संखेज्जगु० । म [ णु ] सिणीसु' इति पाठः । ३. ता० प्रतौ दादीण' इति पाठः ।
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इति पाठः । 'याव स [ सा
२. ता० प्रती दास [ सा]
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