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महावे पाहियारे
१२३. जहण्णए पगदं । दुवि० - ओघे० आद० | ओवे० सव्वत्थोवा अपच्च-. क्वाणमाणे जहण्णयं पदेसग्गं । कोध० जे० प० विसे० । माया ज० प० विसे० । लोभे० ० जह० प० विसे० । एवं पच्चक्खाण०४ - अनंताणु०४ । मिच्छे० ज० प० विसे० । केवलणा० ज० प० विसे० । पयला० ज० प० विसे० । णिद्दा० ज० प० विसे० | पयलापयला० जह० प० विसे० । णिद्दाणिद्दा ० ज प० विसे० । श्रीणगि० ज० प० विसे० । केवलदं० ज० प० विसे० । ओरा० ज० प० अणंतणु० । तेजा० ज० प० विसे० ० । कम्म० ज० प० विसे० । तिरिक्ख० ज० प० संखेज्जगु० । जस-अजस० ज० प० विसे० | मणुस० ज० प० विसे० । दुगुं० ज० प० संखेज्जगु० । भय० ज० प० विसे० । हस्स - सोग० ज० प० विसे० । रदि-अरदि० ज० प० विसे० । अण्णदरवेद० ज० प० विसे० । माणसंज० ज० प० विसे० | कोधसं० ज० प० विसे० । मायासं० ज० प० विसे० । लोभसं० ज० प० विसे० । दाणंत० ज० प० विसे० । लाभंत० ज० प० विसे० । भोगंत ० ज० प० विसे० । परिभोगंत० ज० प० विसे० । विरियंत० ज०
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१२३. जयन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओघसे अप्रत्यास्थानावरण मानका जघन्य प्रदेशाय सबसे स्तोक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण मायाका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है । इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चतुष्क और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी मुख्यतासे अल्पबहुत्व जानना चाहिए | आगे मिथ्यात्वका जयवन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे केवलज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे प्रचलाका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे निद्राका जघन्य प्रदेशात्र विशेष अधिक है। उससे प्रचलाप्रचलाका जवन्य प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे निद्रानिद्राका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे स्त्यानगृद्धिका जवन्य प्रदेशाप्र विशेष अधिक है। उससे केवलदर्शनावरणका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाम अनन्तगुणा है। उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरकका जघन्य प्रदेश विशेष अधिक है। उससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य प्रदेशाय संख्यातगुणा है । उससे यशः कीर्ति और अयशःकीर्तिका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेश संख्यातगुणा है। उससे भयका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे हास्य और शोकका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे रति और अरतिका जघन्य प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे अन्यतर वेदका जवन्य प्रदेशात्र विशेष अधिक है। उससे मानसंज्वलनका जवन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे मायासंज्वलनका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे लोभसंज्वलनका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे दानान्तरायका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे लाभान्तरायका जघन्य प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे भोगान्तरायका जवन्य प्रदेशाम विशेष
१. ताप्रतौ 'कोड [ध० ] ज०' इति पाठः । २. ताप्रती 'अनंताणु०४ मिच्छ० इति पाठः ।
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