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अप्पा बहुगपरूवणा
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१२०. पम्माए तेउ० भंगो । णवरि आहारसरीरादो ओरा० उ० प० विसे० । वेउ० उ० प० विसे० । तेजा० उ० प० विसे० । कम्म० उ० प० विसे० । तिरिक्खमणुसगदि ० दो विसरिसा संखैज्जगु० । देवग० उ० प० विसे० । एवं सुक्काए याव कम्म सरीर ति । तदो मणुसग उक्क० पदे० संखेज्जगु० । देवग० उ० प० विसे० । अजस० उ० प० विसे० । उवरि ओघो ।
१२१. सासणे ओघं याव केवलदंस० । णवरि मिच्छ० णत्थि । तदो ओरा० उ० प० अनंतगु० । वेउ० उ० प० विसे० । तेजा० उ० प० विसे० । कम्म० उ० प० विसे० । तिरिक्ख - मणुसग ० उ० प० संखेज्जगु० | देवग० उ० प० विसे० । । जस०अजस० उ० प० विसे० | दुगुं० उ० प० संखेजगु ० । उवरि मदि० भंगो | णवरि वुंस० णत्थि ।
१२२. सम्मामि० वेदगभंगो। णवरि आउ० आहार० णत्थि । मिच्छा०असणि० मदि० भंगो । सणि० आहार० मूलोघं । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं उकस्सपरत्थाणअप्पात्रहुगं समत्तं ।
१२०. पद्मलेश्या में पीतलेश्या के समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि आहारकशरीरसे औदारिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशात्र विशेष अधिक है। उससे वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे तैजसशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे कार्मणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति इन दोनोंका उत्कृष्ट प्रदेशाय आपसमें समान होकर संख्यातगुणा है । उससे देवगतिका उत्कृष्ट प्रदेशात्र विशेष अधिक है । शुक्ललेश्या में कार्मणशरीरका अल्पबहुत्व प्राप्त होनेतक इसीप्रकार जानना चाहिए। उससे आगे मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाय संख्यातगुणा है। उससे देवगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे अयशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे आगे ओघके समान भङ्ग है ।
१२१. सासादनसम्यक्त्व में केवलदर्शनावरणका अल्पबहुत्व प्राप्त होने तक ओके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वप्रकृति नहीं है । आगे औदारिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाम अनन्तगुणा है। उससे वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तैजसशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे तिर्यञ्चगति और मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशात्र संख्यातगुणा है । उससे देवगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे यशः कीर्ति और अयशः कीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है । उससे आगे मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेद नहीं है ।
१२२. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि आयु और आहारकशरीर नहीं है । मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। संज्ञी और आहारक जीवोंमें मूलोघके समान भङ्ग है । अनाहारक जीवों में कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है ।
इस प्रकार उत्कृष्ट परस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ ।
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