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महाबंधे पदेसबंधाहियारे प० विसे० । जस०-उच्चा० उ०प० संखेज्जगु० । सादा० उक्क० प० विसे ।
११८. संजदासंजदेसु सव्वत्थोवा पच्चक्खाणमाणे० उ० पदे० । कोधे० उ० प० विसे । माया० उ०प० विसे० । लोमे० उ० प० विसे । केवलणा० उ० ५० विसे । पयला० उ०. प० विसे । णिद्दा० उ०प० विसे० । केवलदं० उ०प० विसे० । वेउ० उ०प० अणंतगु० । उवरिं आहारकायजोगिभंगो।
११६. असंजदेसु पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तभंगो । चक्खुदं०-अचक्खुदं० ओघो । ओधिदं० ओधिणाणिभंगो। किण्ण-णील-काऊणं असंजदभंगो । तेऊए ओघं याव केवलदसणावरणीय' ति । तदो आहार० उ० प० अणंतगु० । वेउ० उ०प० विसे० । ओरा० उ०प० विसे० । तेजा० उ०प० विसे० । कम्म० उ०प० विसे० । मणुस० उ० प० संखेंज्जगु० । देवग० उ०प० विसे० । तिरिक्ख० उ०प० विसे। जस०-अजस० उ०प० विसे । उवरिं आहारकायजोगिभंगो। णवरि तिरिक्खाउ०मणुसाउ० अस्थि ।
चक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है । उससे सातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है।
११८. संयतासंयत जीवोंमें प्रत्याख्यानावरण मानका उत्कृष्ट प्रदेशाप सबसे स्तोक है। उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण मायाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण लोभका उत्कृष्ट प्रदेशान विशेष अधिक है। उससे केवलज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे प्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे निदाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे केवलदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है । उससे आगे आहारककाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है।
११६. असंयत जीवोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। चतुदर्शनवाले और अचतुदर्शनवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। अवधिदर्शनवाले जीवोंमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें असंयतोंके समान भङ्ग है । पीतलेश्यावाले जीवोंमें केवलदर्शनावरणीयका अल्पबहुत्व प्राप्त होनेतक ओघके समान भङ्ग है । उससे आगे आहारकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है । उससे वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे औदारिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तैजसशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे कार्मणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे देवगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तिर्यश्चगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे यश-कीर्ति और अयशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे आगे आहारककाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि यहाँपर तिर्यश्चायु और मनुष्यायु हैं। अर्थात् आहारक काययोगमें तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका बन्ध नहीं था, किन्तु पीतलेशयामें इन दोनों आयुओंका बन्ध होता है।
१ ता.आप्रत्योः 'केवलणाणावरणीय' इति पाठः । २ ता आ०प्रत्योः 'णवरि णिरयाउ तिरिक्खाउ०
णत्थि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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