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________________ अप्पाबहुगपरूवणा उक्क० पदे० विसे० । कम्म० उक० पदे० विसे० । तिरिक्खग०-मणुसग० उक० पदे. संखेज्जगु० । जस०-अजस० उक्क० पदे० विसे । दुगुं० उक० पदे० संखेंज्जगु०। भय० उक्क० पदे० विसे । हस्स-सोगे उक्क० पदे० विसे० । रदि-अरदि० उक्क० पदे० विसे । इथि०-णबुस० उक्क० पदे. विसे । पुरिस० उक्क० पदे० विसे० । माणसंज० उक्क० पदे० विसे० । कोधसंज० उक्क० पदे० विसे । मायासंज. उक्क० पदे० विसे० । लोभसंज० उक्क० पदे० विसे । दाणंत० उक्क० पदे० विसे० । लाभंत० उक्क० पदे० विसे० । भोगंत० उक्क० पदे० विसे० । परिभोगंत० उक० पदे० विसे० । विरियंत० उक्क० पदे. विसे० । मणपज्जे० उक० पदे० विसे० । ओधिणा० उक्क० पदे० विसे । सुद० उक० पदे० विसे० । आभिणि० उक्क० पदे० विसे । ओधिदं० उक्क० पदे. विसे० । अचक्खु० उक्क० पदे० विसे । चक्खुर्द • उक्क० पदे० विसे० । अण्णदरे आउगे०. उक्क० पदे० संखेज्जगु० । अण्णदरे गोदे० उक्क० पदे० विसे० । अण्णदरे वेदणीए० उक्क० पदे. विसे । एवं सत्तसु पुढवीसु । १०५. तिरिक्खेसु मूलोघं याव केवलदसणावरणीयस्स उक्क० पदे० विसे । अनन्तगुणा है । उससे तैजसशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तिर्यश्चगति और मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है । उससे यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है । उससे भयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे हास्य और शोकका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे रति और अरतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशान विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे दानान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे लाभान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे भोगान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे परिभोगान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे वीयोन्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनःपर्ययज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अवधिज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे श्रुतज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अवधिदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अचक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे चतुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे अन्यतर आयुका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे अन्यतर गोत्रका उत्कृष्ट प्रदेश प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अन्यतर वेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए। १०५. तिर्यञ्चों में केवलदर्शनावरणीयका उत्कृष्ट प्रदेशाप विशेष अधिक है। इस स्थानके १. आ० प्रतौ 'परिभोगंत० उक्क० पदे विसे० । मणपज' इति पाठः । २. ता. प्रतौ 'अचक्खु० उ. विसे० । अचक्खु० उ० विसे० (१) चक्खुदं०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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