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अप्पाबहुगपरूवणा णिरयभंगो । सव्वत्थोवा मणुस० जह० पदे० ! देवग० जह० पदे. विसे ।
एवं सत्थाणअप्पाबहुगं समत्तं । १०३. परत्थाणप्पाबहुगं दुविधं-जह० उक० च । उक्क पगदं। दुवि०-ओघे० आदे। ओघे० सव्वत्थोवा अपञ्चक्खाणमाणे उक्क० पदेसग्गं । कोधे० उक्क० पदे० विसे० । माया० उक्क० पदे० विसे । लोभे० उक्क० पदे० विसे । एवं पञ्चक्खाण०४अणंताणु०४ । मिच्छ० उक० पदे० विसे। केवलणा० उक० पदे० विसे । पयला० उक० पदे० विसे । णिद्दा० उक० पदे० विसे० । पयलापयला० उक्क० पदे. विसे । णिदाणिद्दा० उक्क० पदे विसे० । थीणगिद्धि० उक्क० पदे० विसे । केवलदं० उ० पदे० विसे । आहार० उक्क० पदे० अणंतगु० । वेउ० उक्क० पदे० विसे० ।
ओरा० उक० पदे० विसे० । तेजा० उक्क० पदे० विसे० । कम्म० उक्क० पदे० विसे । णिरयग० उक्क० संखेंज्जगु० । [देवग० उक. विसे०] । मणुस० उक्क० पदे० विसे । तिरिक्ख० उक्क० पदे. विसे । अज० उक० पदे. विसे० । दुगुं० उक० पदे० सं०गु० । भय० उक्क० पदे० विसे० । हस्स-सोग० उक्क० पदे० विसे । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सात कर्मोंका भङ्ग नारकियोंके समान है। मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे देवगतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है।
- इस प्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। - १०३. परस्थान अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे अप्रत्याख्यानावरण मानका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण मायाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरणचतुष्क और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेशागका अल्पबहुत्व जानना चाहिए। आगे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे केवलज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे प्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे प्रचलाप्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेप अधिक है। उससे स्त्यानगृद्धिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे केवलदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे आहारकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है । उससे वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेप अधिक है। उससे औदारिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तैजसशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे नरकगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे देवगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तिर्यश्चगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अयश कीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे भयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे हास्य-शोकका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक
१. ता-प्रतौ 'पञ्चक्खाण०४ । अणंताणु०४ मिच्छ० उ०' इति पाठः । २. ता. प्रतौ 'विसे पयला०' इति पाठः ।
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