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महाबंधे पदेसबंधाहियारे सत्तणं क० तिण्णि प० लोग० संखे० सव्वलो० ।
१३५. देवाणं सत्तण्णं क० तिणि प० अट्ठ-णव० । आउ० चत्तारिप० अट्ठचो० । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं । पंचिं०-तस०२ सत्तण्णं'क० भुज-अप्प०अवट्टि अट्ठचौ. सव्वलो० । अवत्त० खेत्तभंगो। आउ० चत्तारिप० अहचों । एवं पंचमण०-पंचवचि०-इस्थि०-पुरिस०-विभंग-चक्खु०-सण्णि त्ति । वेउ० सत्तण्णं क० तिण्णिप० अह-तेरह० । आउ० सव्वप० अट्ठचों ।
१३६. वेउब्वियमि०-आहार-आहारमि०-अवग०-मणपज० याव सुहुमसंप० खेत्तभंगो । आभिणि-सुद-ओधि० सत्तण्णं क० तिण्णिप० अहचों । अवत्त० खेतभंगो। बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ—यहाँ जितनी मार्गणाओंमें स्पर्शन कहा है उनमें यही बात जाननी चाहिर कि उन मार्गणाओंका जो समुद्घातकी अपेक्षा स्पर्शन है वह सात कर्मों के पदोंकी अपेक्षा जानना चाहिए और जो स्वस्थान स्पर्शन है वह आयुकर्मकी अपेक्षा जानना चाहिए। स्पर्शनका उल्लेख मूलमें किया ही है।
१३५. देवोंमें सात कर्मो के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयुकर्मके चारों पदोंके बन्धक जीवाने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंमें अपना-अपना स्पशेन जानना चाहिए। पञ्चन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सव लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदका भङ्ग क्षेत्रके समान है। आयुकर्मके चारों पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभङ्गज्ञानी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवों में जानना चाहिए। वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सात कर्मों के तीन पदोंके बन्धक जीवाने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवाने त्रसनालीके कुछकम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ–यहाँ सात कर्मों के सम्भव पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन उन-उन मार्गणाओंका जो स्पर्शन है उतना है और आयुकर्मका बन्ध विहारवत्स्वस्थानके समय भी सम्भव है, इसलिए इसके सब पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। आगे भी सब मार्गणाओंमें विचार कर इसी प्रकार स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। यदि कहीं कोई विशेषता होगी तो मात्र उसका स्पष्टीकरण करेंगे।
१३६. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी और मनःपर्ययज्ञानीसे लेकर सूक्ष्मसाम्पराय संयत तक स्पर्शन क्षेत्रके समान है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मो के तीन पदोंके बन्धक जीवाने
सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवाने त्रसनालीके कुछ कम
१. श्रा०प्रतौ तस ३ सत्तण्णं इति पाठः ।
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