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________________ ६८ महाबंधे पदेसर्वधाहियारे ओरालिमि०-णस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज-तिण्णिले०-अब्भव०-मिच्छा०असण्णि. ओघमंगो। णवरि सत्तणं क० अवत्त० णत्थि । कम्मइ०-अणाहार० सत्तण्णं क. अगंता। १२९. णिरएसु' सव्वपदा असंखेंजा । एवं सव्वणिरयाणं सव्वपंचिंदि०तिरि०-सव्वअपज्जत्तगाणं देवाणं याव सहस्सार त्ति सव्वविगलिंदिय-पंचका०-वेउव्वि०[वेउ मि०] इत्थि०-पुरिस०-विभंग-संजदासंजद ०-तेउ ०-पम्म०-वेदग०-सासण०सम्मा०। १३०. मणुसेसु सत्तणं क. भुज०-अप्प०-अवढि० असंखेंजा। अवत्त० संखेंज्जा। आउ० सव्वपदा असंखेंजा। एवं पंचिंदि०-तस०२-पंचमण-पंचवचि०आभिणि-सुद०-ओधि०-चक्खु०-ओधिदं०-सम्मादि०-उवसम०-सण्णि ति। मणुसपजत्त-मणुसिणीसु अट्टण्णं क० संखेंजा । एवं सव्वद्ध०- आहार० र-आहारमि०-अवगदमणपज०-संज०-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुहुमसं० । आणद याव अवराइदा त्ति सत्तण्णं भुज०-अप्प०- अवहि० केत्ति० १ असंखेंजा। आउ० सव्वपदा संखेजा। वनस्पतिकायिक, निगोद, औदारिकमिश्रकाययोगो, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवामें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें सात कर्मोंका अवक्तव्यपद नहीं है। कामणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मों के भुजगारपदके बन्धक जीव अनन्त हैं। १२९. नारकियोंमें सब पदवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च, सब अपर्याप्त, देव, सहस्रार कल्पतकके देव, सब विकलेन्द्रिय, पाँच स्थावरकायिक, वैक्रियिकफाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभङ्गज्ञानी, संयतासंयत, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, वेदकसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए । १३०. मनुष्यों में सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यात हैं और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं । आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवों में जानना चाहिए । मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें आठों कर्मों के सब पदवाले जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें जानना चाहिए। आनतसे लेकर अपराजित तकके देवों में सात कर्मों के भजगार. अल्पता और अनलिन । के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। आयु कर्मके सब पदोंके बन्धक जोव संख्यात हैं । इसी प्रकार शुक्ललेश्या १. ता. प्रतौ णत्थि।.... "कम्मइ. अणाहार० सत्तग्णं कम्माणं अणंता] । णिरयेसु इति पाठः । २. आ० प्रतौ सव्वत्थ आहार • इति पाठः । ३. ता. प्रतौ आली० (उ०) सव्वप० इति पाठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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