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महाबंचे पदेसबंधाहियारे
काय जोगि - ओरालि० -अचक्खु ० - भवसि ० आहारग ति । तिरिक्खोघं सव्वएइंदियपंचका० ओरा०मि० णवुंस० - कोधादि ०४ - मदि ० - सुद० - असंज० - तिण्णिले० - मिच्छा ०१असणि० ओघभंगो । णवरि सत्तण्णं क० अवत्तव्वगे० णत्थि । लोभे मोह० ओघं ।
१२६. णिरएस सत्तण्णं क० भुज० - अप्प० णियमा अत्थि । सिया एदे य अवदे य अवहिदा य । आउ • सव्वपदा भयणिज्जा । एवं सव्वणिरयाणं । एवं सव्वेसिं असंखेजरासीणं । णवरि सत्तण्णं क० अवत्त० अत्थि । तेसिं भुज० - अप्प० णियमा अथ । सेसपदा भणिजा । मणुस० अपज० आहार० - अवगद ० -सुहुमसं०-उवसम०सासण० - सम्मामि० सव्वपदा भयणिज्जा । बादरपुढ० - आउ० तेउ० - वाउ०- बादरवण०पत्ते पत्ता णिरयभंगो । कम्मइ० अणाहार० सत्तणं क० भुज० णियमा अत्थि । उव्वि०मि० सत्तण्णं० आहारमि० अट्ठण्णं पि सिया भुजगारगे य सिया मुजगारगा य ।
एवं भंगविचयं समत्तं भागाभागागमो ।
१२७. भागाभागं दुवि० - ओघे० ओदे० ओघे० सत्तण्णं क० भुज०बं० भव्य और आहारक जीवों में जानना चाहिए । सामान्य तिर्यञ्च, सब एकेन्द्रिय, पाँच स्थावर काय, ओदारिक मिश्र काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कपायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, मिध्यादृष्टि और असंज्ञी जीवामें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें सात कर्मों के अवक्तव्यपवाले जीव नहीं हैं । मात्र लोभकषाय में मोहनीय कर्मका भङ्ग ओघके समान है |
१२६. नारकियों में सात कर्मोंके भुजगार और अल्पतर पदवाले जीव नियमसे हैं । कदाचित् ये नाना जीव हैं और अवस्थितपदवाला एक जीव है । कदाचित् ये नाना जीव हैं और अवस्थित पदवाले नाना जीव हैं। आयुकर्मके सब पद भजनीय हैं। इस प्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार असंख्यात संख्यावाली राशियों में जानना चाहिए । मात्र इतनी विशेषता है कि जिनमें सात कर्मोंका अवक्तव्यपद है उनमें भुजगार और अल्पतरपदवाले जीव नियमसे हैं और शेष पद भजनीय हैं। मनुष्य अपर्याप्त, आहारककाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सब पद भजनीय हैं। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिकपर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीरपर्याप्त जीवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है । कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोंके भुजगार पदवाले जीव नियमसे हैं । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में सात कर्मों के और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में आठों कर्मोंके भुजगारपदवाला कदाचित् एक जीव है और कदाचित् नाना जीव हैं । इस प्रकार भङ्गविचय समाप्त हुआ ।
भागाभागानुगम
१२७. भागाभाग दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मोंके भुजगारपदके
१. ता० प्रतौ संज० ति [ अत्र क्रमांकरहितः ताडपत्रोऽस्ति ] प्रतौ सासण० सम्मामि० इति पाठः । ३. ता० प्रतौ भुजगारगे सिया
मिच्छा० इति पाठः । २. आ० भुजगारगा भागाभागं इति पाठः ।
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