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________________ ४६ महाबंधे पदेसबंधाहियारे कालमसं० । अणु० ज० ए०, उ० अंतो० । आउ० उ० ज० ए०, उ० अणंतका० असं० । अणु० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० सादि०। ९१. णिरएसु सत्तणं क० उ० ज० ए०, उ० तेत्तीसं दे० । अणु० ज० ए०, उ० बे० सम० । आउ० उ० अणु० ज० ए०, उ० छम्मासं देसू ० । एवं सत्तसु अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। विशेषार्थ-छह कर्मोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध उपशमश्रेणिमें भी होता है। वहीं यह सम्भव है कि इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध एक समयके अन्तरसे भी हो और कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कालके अन्तरसे भी हो । यही कारण है कि ओघसे इन कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण कहा है। तथा जो जीव उपशमश्रेणिमें, अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध कर रहा है,वह एक समयके लिए उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करके पुनः अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करने लगता है,उसके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका एक समय प्रमाण अन्तर देखा जाता है और जो जीव उपशान्तमोहमें अन्तर्मुहूर्त कालतक अबन्धक होकर नीचे उतर कर छह कर्मोंका पुनः बन्ध करता है, उसके इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अन्तर काल देखा जाता है। यही कारण है कि यहाँ इन कर्मों के अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध एक समयके अन्तरसे भी हो सकता है और संज्ञियोंके उत्कृष्ट अन्तरकालको देखते हुए अनन्त कालके अन्तर से भी हो सकता है, इसलिए यहाँ मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल प्रमाण कहा है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर उक्त काल प्रमाण ले आना चाहिये । पहले छह कर्मो के अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर घटित करके बतलाया ही है,उसी प्रकार मोहनीयके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर घटित कर लेना चाहिये । आयुकर्मका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध एक समयके अन्तरसे भी होता है और साधिक तेतीस सागरके अन्तरसे भी होता है, क्योंकि जो एक पूर्वकोटिकी आयुवाले तिर्यश्च और मनुष्य प्रथम त्रिभागमें आयुकर्मका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करके और मरकर तेतीस सागरकी आयुवाले नारकियां व देवोंमें यथासम्भव उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर आयुकर्मका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करते हैं,उनके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका साधिक तेतीस सागरप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर देखा जाता है, इसलिये आयुकर्मके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागरप्रमाण कहा है। यहाँ सरल होनेसे जघन्य अन्तर एक समयका खुलासा नहीं किया है। ९१. नारकियोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना प्रमाण है। इसी प्रकार सातों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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