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________________ सामित्तपरूवणा पञ्जत्तए सत्तणं क० ज० प० क० ? अण्ण० पढम० तब्भवत्थ० जह० आउ० जह० घोडमाणजह० जोगि० । पंचि०३ पंचिंदियतिरिक्ख भंगो । ४९. तस० सत्तणं क० ज० प० क० ? अण्ण० वीइंदि० १० अप० पढम०तव्भव० जह० जो० । आउ० ज० प० क० ? अण्ण० बीइंदि० अप० खुद्दाभ० तदियतिभा० पढमसम० जह० ह० जोगि० । एवं तसअपज० । तसपञ्ज० सत्तणं क० ज० प० क० ? अण्ण० बीइंदि० पढम० तव्भव० जह० जोगि० । आउ० जह० घोडमाणजह ० जो ० | पंचण्णं कायाणं एइंदियभंगो । ५०. पंचमण० - तिण्णिवचि० अट्ठण्णं क० ज० प० क० १ अण्ण० चदुगदि० सम्मा० मिच्छा० घोडमा० अडविध० जह० जोगि० | दोवचि० अट्ठण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० बीइंदि० घोड० अट्ठविध० जह० जोगि० । ५१. ओरालियका० सत्तण्णं क० ज० प० क० ? सुहुमणिगोदस्स पढमसमयपञ्जत्तयस्स जह० जोगि० । आउ० ज० प० क० ? अण्ण० सुहुमणिगोद०' घोडमा ० इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो प्रथम समयवर्ती तद्भषस्थ और जघन्य योगवाला है, वह उक्त कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोलमान जघन्य योगवाला जीव है । पचेन्द्रियत्रिक में पचेन्द्रियतिर्यखों के समान भङ्ग है । ४९. त्रसकायिकांमें सात कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात । कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीव क्षुल्लक भवग्रहणके तृतीय त्रिभाग के प्रथम समयवर्ती है और जघन्य योगवाला है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशचन्धका स्वामी है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों में जानना चाहिए। त्रस पर्याप्तकों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर द्वीन्द्रिय जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोलमान जघन्य योगवाला जीव है । पाँचों कायवालोंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है । ५०. पाँचों मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें आठों कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योगवाला जीव है, वह उक्त आठ प्रकारके कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका खामी है । दो वचनयोगवाले जीवोंमें आठों कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योगवाला द्वीन्द्रिय जीव उक्त आठों कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । ५१. औदारिककाययोगी जीवों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो सूक्ष्म निगोदिया जीव प्रथम समयवर्ती पर्याप्त और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सूक्ष्म निगोदिया जीव घोलमान जघन्य योगवाला है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । औदारिक मिश्रकाययोगी जीवों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका १. ता० प्रतौ आउ० ज० सुहुमणिगोद० इति पाठः । ४ २५ ० जोगि० । Jain Education International For Private & Personal Use Only guccicrcuri S www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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