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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे णेदव्वं । णवरि एसि संखेजरासी' तेसिं आहारसरीरभंगो कादव्यो। एवं भागामागं समत्तंर । परिमाणपरूवणा ५७२. परिमाणं दुविहं-जहण्णयं उक्कस्सयं च । उक्क० पगदं । दुवि०-ओधे० आदे० । ओधे० तिण्णिआउ०-वेउब्वियछ० उक्कस्साणुक्कस्सपदेसबंधगो केवडियो ? असंखेंजा। आहारदुर्ग उक० अणु० केव० संखेजा। तित्थ० उक० पदे०७० केव० ? संखेंजा । अणु० केव० ? असंखेंजा । सेसाणं उक० केव० १ असंखेंजा। अणु० केत्ति ? अणंता। णवरि पंचणा०-चदुदंसणा०-सादा०-चदुसंज०-पुरिस०जस०-उच्चा०-पंचंत० उक० पदे०५० केत्ति ? संखेंजा । अणु० केत्ति० १ अणंता । प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जिनकी राशि संख्यात है,उनमें आहारकशरीरके समान भङ्ग है। विशेषार्थ-यहाँ ओघसे असंख्यातका भाग देने पर एक भागप्रमाण जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवालोंका प्रमाण आता है और बहुभागप्रमाण अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवालोंका प्रमाण आता है, इसलिए आहारकद्विकको छोड़कर शेष सब प्रकृतियों की अपेक्षा असंख्यातवें भागप्रमाण जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कहे हैं और असंख्यात बहुभागप्रमाण अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कहे हैं। मात्र आहारकद्विकका बन्ध करनेवाले जीव ही संख्यात होते हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा भागाभाग उत्कृष्टके समान जाननेकी सूचना की है। नरकमतिसे लेकर अनाहारक तक अनन्त संख्यावाली और असंख्यात संख्यावाली जितनी मार्गणाएँ हैं, उनमें ओघके समान प्ररूपणा बन जानेसे उसे ओघके समान जाननेकी सूचना की है। तथा जो संख्यात संख्यावाली मार्गणाएँ हैं, उनमें आहारकशरीरकी अपेक्षा कहा गया भागाभाग ही घटित हो जाता है, इसलिए उनमें सब प्रकृतियोंके भागाभागको आहारक शरीरके समान जाननेकी सूचना की है। इस प्रकार भागाभाग समाप्त हुआ। परिमाणप्ररूपणा ५७२. परिणाम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे तीन आयु और वैक्रियिक छहका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। आहारकद्विकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। शेष सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इतनी विशेषता है कि पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार ओघके १. ता०प्रती 'ए संखेनरासी०' इति पाठः । २ ता०प्रती एवं भागाभाग समत्तं' इति पाठो नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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