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________________ महाबंचे पदेसंबंधाहियारे जहण्ण- अजहण्णपदेसबंधपरूवणा २२. यो सो जहण्णबंधो अजहण्णबंधो णाम' तस्स इमो दुवि० णिदेसो- ओघे० आदे० | ओघे० णाणावर ० किं० जहण्णबंधो अजहण्णबंधो ? जहण्णबंधो वा अजहण्णबंधो वा । सव्वजहण्णयं पदेसग्गं बंधमाणस्स जहण्णबंधो। तदुवरि बंधमाणस्स अजहण्णबंधो । एवं सत्तणं कम्माणं । णिरएस ओघं पडुच्च अजहण्णबंधो । एवं याव अणाहारग त्ति दव्वं । १२ सादि-अनादि-धुव-अद्भुवपदेसंबंधपरूवणा २३. यो सो सादियबंधो अणादियबंधो धुवबंधो अद्भुवबंधो णाम तस्स इमो दुवि० नि० - ओषे० आदे० । ओघे० छण्णं कम्मार्ण उक्कस्स- जहण्ण- अजहण्णपदेसबंधो किं सादियबंधो०४१ सादिय-अद्ध्रुवबंधो। अणुक्कस्सपदेसबंधो किं सादि०४ १ विशेषार्थ – इन दोनों अनुयोगद्वारोंमें पूरा स्पष्टीकरण सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध अनुयोगद्वारोंके विवेचनके समय जिस प्रकार कर आये हैं, उसी प्रकार कर लेना चाहिये। जिस प्रकार सर्वबन्धसे उत्कृष्टरूपसे बँधे हुए सब प्रदेश विवक्षित हैं, उसी प्रकार उत्कृष्टबन्धमें भी उत्कृष्ट रूपसे बँधे हुए प्रदेश विवक्षित हैं और जिस प्रकार नोसर्वबन्धमें न्यून बँधे हुए प्रदेश विवक्षित हैं, उसी प्रकार अनुत्कृष्ट बन्ध में भी न्यून बँधे हुए प्रदेश विवक्षित हैं। इनमें केवल अन्तर इतना है कि उत्कृष्टबन्धमें समुदायकी मुख्यता है और सर्वबन्ध अवयवप्रधान है । जघन्य-अजघन्यप्रदेशबन्धप्ररूपणा २२. जो जघन्यबन्ध और अजघन्यबन्ध है उसका यह निर्देश है— ओघ और आदेश । ओघसे ज्ञानावरणकर्मका क्या जघन्यबन्ध होता है या अजघन्यबन्ध होता है ? जघन्यबन्ध भी होता है और अजघन्यबन्ध भी होता है । सबसे जघन्य प्रदेशोंको बाँधनेवालेके जघन्यबन्ध होता है और उनसे अधिक प्रदेशों को बाँधनेवालेके अजघन्य बन्ध होता है । इसी प्रकार शेष सात कर्मों की अपेक्षासे जानना चाहिए। नरकों में ओघकी अपेक्षा अजघन्यबन्ध होता है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिये । विशेषार्थ — नोसर्वबन्ध से जघन्यबन्धमें क्या अन्तर है, इसका स्पष्टीकरण अनन्तर पूर्व कहे गये विशेषार्थसे हो जाता है। यहाँ एक विशेष बात यह कहनी है कि यहाँ नरकों में अजघन्यबन्ध क्यों है ? इसका खुलासा 'ओघं पडुच' इस पदद्वारा किया है। इस आधार सब मार्गणाओंमें कहाँ ओघकी अपेक्षा जघन्यबन्ध संभव है और कहाँ अजघन्यबन्ध संभव है, इसका खुलासा कर लेना चाहिये । सादि-अनादि- ध्रुव-अध्रुवप्रदेश बन्धप्ररूपणा २३. जो सादिबन्ध, अनादिबन्ध, ध्रुवबन्ध और अध्रुवबन्ध है, उसका यह निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे छह कर्मोंका उत्कृष्टप्रदेशबन्ध, जघन्यप्रदेशबन्ध और अजघन्य प्रदेशबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिबन्ध है, क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिवन्ध है और अध्रुवबन्ध है । अनुत्कृष्टप्रदेशबन्ध क्या सादिबन्ध है, १. ता० प्रतौ जहण्णबंधो णाम इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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