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________________ उकस्सअणुक्कस्सपदेसबंधपरूवणा आदे० । ओघेण णाणावरणीयस्स पदेसवंधो किं सव्वबंधो णोसव्वबंधो ? सव्वबंधो वा णोसव्वबंधो वा। सव्वाणि पदेसबंधताणि बंधमाणस्स सव्वबंधो। तदणं बंधमाणस्स जोसव्वबंधो। एवं सत्तण्णं कम्माणं । णिरएसु मोहाउगं ओघं । सेसाणं णोसव्यबंधो। एवं याव अणाहारग ति णेदव्वं ।। उकस्स-अणुक्कस्सपदेसबंधपरूवणा २१. यो सो उक्कस्सबंधो अणुक्कस्सबंधोणाम तस्स इमो दुवि० णि०--ओघे० आदे० । ओघे० णाणावरण० किं उक्कस्सबंधो अणुकस्सबंधो ? उक्कस्सबंधो वा अणुकस्सबंधो वा । सव्वुकस्सपदेसं बंधमाणस्स उक्कस्सबंधो। तदणं बंधमाणस्स अणुक्कस्सबंधो। एवं सत्तण्णं । णिरयेसु मोहाउगं ओघं । सेसाणं अणुक्कस्सबंधो। एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्वं । से ज्ञानावरणीय कर्मका क्या सर्वबन्ध है या नोसर्वबन्ध है ? सर्वबन्ध भी है और नोसर्वबन्ध भी है । सब प्रदेशोंको बाँधनेवालेके सर्वबन्ध होता है और उनसे न्यून प्रदेशोंको बाँधनेवाले जीवके नोसर्वबन्ध होता है । इसी प्रकार सात कर्मों के विषयमें जानना चाहिए । नरकगतिमें मोहनीय और आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है। तथा शेष कर्मोंका वहाँ नोसर्वबन्ध है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ-इन दोनों मिले हुए अधिकारों में प्रदेशोंकी अपेक्षा सर्वबन्ध और नोसर्वबन्धका विचार ओघ और आदेशसे किया गया है। ओघसे विचार करते समय ज्ञानावरणादि आठों कर्मो का सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध यह दोनों ही प्रकारका बन्ध बतलाया गया है । इसका तात्पर्य यह है कि अपने-अपने योग्य उत्कृष्ट योगके होनेपर जब ज्ञानावरणादि कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध होता है,तब वहाँ उस कर्मकी अपेक्षा सर्वबन्ध कहलाता है और इससे न्यून प्रदेशोंका बन्ध होनेपर नोसर्वबन्ध कहलाता है। मार्गणाओंमें मात्र नरकगतिकी अपेक्षा विचार किया है और शेष मार्गणाओंमें इसी प्रकारसे जानने भरका संकेत किया है। नरकगतिमें मोहनीय और आयुकर्मका प्रदेशबन्ध ओघके समान सम्भव होनेसे वहाँ इन दो कर्मो का तो ओघके समान सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध कहा है तथा शेष कर्मों का नोसवेबन्ध बतलाया है, क्योंकि ओघसे इन छह कर्मो में सबसे अधिक प्रदेशोंका बन्ध उपशमश्रेणि और क्षपकश्रेणिमें होता है, जो दोनों श्रेणियाँ नरकमें सम्भव नहीं हैं। इसके अतिरिक्त अन्य जितनी मार्गणाएँ हैं उनमें यथासम्भव अपनी-अपनी विशेषताको देखकर आठों कर्मो का या जहाँ जितने कर्मोंका बन्ध सम्भव हो उनका सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध यथासम्भव जानना चाहिए , यह उक्त कथनका तात्पर्य है। उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टप्रदेशबन्धप्ररूपणा २१. जो उत्कृष्टबन्ध और अनुत्कृष्टबन्ध है उसका यह निर्देश है-ओघनिर्देश और आदेश निर्देश । ओघसे ज्ञानावरण कर्मका क्या उत्कृष्टबन्ध होता है या अनुत्कृष्टबन्ध होता है ? उत्कृष्टबन्ध भी होता है और अनुत्कृष्टबन्ध भी होता है। सबसे उत्कृष्ट प्रदेशोंको बाँधनेवालके उत्कृष्टबन्ध होता है और उनसे न्यून प्रदेशोंको बाँधनेवालेके अनुत्कृष्टबन्ध होता है। इसी प्रकार सातों कर्मों के विषयमें जानना चाहिए । नारकियोंमें मोहनीय और आयुकर्मका भंग ओघके समान है। तथा वहाँ शेष कर्मो का अनुत्कृष्टबन्ध होता है। इसी प्रकार अनाहारक मागणातक जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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