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उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं
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माणकसाइभंगो । णवरि चदसंजलणाणं णिहाए भंगो। अपचक्खाण०४-पञ्चक्खाण ०४ दंडओ माणकसाइभंगो । गवरि चद संज० णिहाए भंगो।
४५४. कोधसंज. उक्क० पदे०६० पंचणा०-चदुदंस०-साद० जस०-उच्चा०पंचंत० णि बं० [णि० उक्क० । माणसंज० णि० बं० ] चदभागणं । माया-लोभसंज. णि० ० संखेंजगुणहोणं । माणसंज. उक्क० पदे०५० पंचणा० चदंस०साद०-जस०-उच्चा०-पंचंत. णि बं० णि० उक्क० । माया-लोभसंज० णि बं० संखेंअदिभागणं० । मायाए उक्क० पदे०० पंचणा०-चददंस०-साद०-लोभसंज-जस०-उच्चा०पंचंत० णि. बं० उक्क० । एवं लोभसंज०।।
४५५. इथि०-णवूस. माणभंगो। णवरि कोधसंज. णि० ० भागूणं० । माणसंज० णि सादिरेयं दिवड्डभागणं० । माया-लोभसंज० णि. संखेंजगुणही० । पुरिस० माणभंगो । णवरि चद संज० इथिभंगो । छण्णोक० माणकसाइभंगो । णवरि कि चार संज्वलनका भङ्ग निद्राके समान है। अर्थात् यहाँ पर निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करने वाले जीवके चार संज्वलनका जिसप्रकार सन्निकर्ष कहा है उसी प्रकार असातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके जानना चाहिए । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और प्रत्याख्यानावरण चतुष्कदण्डकका भङ्ग मानकषायवाले जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनका भङ्ग निद्राके समान है। अर्थात् यहाँ पर निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके जिस प्रकार चार संज्वलनका भङ्ग कहा है उसी प्रकार उक्त आठ कषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके जानना चाहिए।
. ४५४. क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मानसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे चार भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलन और लोभसंज्वलन का नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलन और लोभसंज्वलनका नियम बन्ध करता है जो इनका संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, लोभसंज्वलन, यशःकीर्ति उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार लोभसंज्वलनको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
४५५. स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका भङ्ग मानकषायवाले जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव क्रोधसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता हैं जो इसका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । मानसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इसका नियमसे साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलन और लोभसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेदका भङ्ग मानकषायवाले जीवोंके समान है । इतनी विशेपता है कि इसका उत्कृष्ट बन्ध करनेवाले जीवके चार संज्वलनका भङ्ग स्त्रीवेदकी मुख्यतासे कहे गये सन्निकर्षके समान है । छह नोकपायोंका भङ्ग मानकषायवाले जीवोंके समान है। इतनी विशेषता
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