SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ महाबंचे पदेसबंध हियारे ० णि० तं तु ० अनंतभागूणं ब० । पंचणोक० सिया० तं तु० अनंतभागूणं बं० । तिणिगदि - पंचजादि - दोणिसरीर - छस्संठा० - दोअंगो० - छस्संघ० - तिण्णिआणु० - पर०उस्सा०- [उजो०] दोविहा० तसादिदसयुग० सिया० तं तु ० संखेजदिभागूणं ब० । तेजा ० क० वण्ण ०४- अगु० -उप० - णिमि० णि० ब ० णि० तं० तु ० संखैज दिभागूणं ० । एवं चदुणा० -सादासाद ० - पंचंत० । ब. ० ३९२. णिद्दाणिद्दाए उक्क० पदे०चं० पंचना० - दोदंस० - मिच्छ० - अणंताणु ०४पंचत० णि० ब० णि० उक्क० । छदंस० चारसक० -भय-दु० णि० ब० णि० अनंतभागणं ब० । दोवेदणी० - इत्थि० णत्रुंस० आदाव० दोगोद० सिया० उक्क० | पंचणोक० सिया॰ अनंतभागूणं ब ं० । दोगदि-पंचजादि- पंचसंठा० - ओरालि० अंगो०- उस्संघ०दोआणु० - पर०-उस्सा० उज्जो ० अप्पसत्थ० तसादिचदुयुग० थिरादितिष्णियुग० - दूभग करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियम से बन्ध करता है । किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तीन गति, पाँच जाति, दो शरीर, छह संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति और त्रस आदि दस युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार चार ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय और पाँच अन्तरायकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये । ३९२. निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, आतप और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पाँच नोकषायका कदाचित् ब करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । दो गति, पाँच जाति, पाँच संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात उच्छ्रास, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस आदि चार युगल, स्थिर आदि तीन युगल, दुर्भग, दुःखर और अनादेयका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं Jain Education International १. आ० प्रती 'उप० णि० बं०' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy