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महाबंवे पदेसबंधाहियारे संखेंजदिभागणं बं० । समचदु०-वञ्जरि०-पसस्थ०-सुभग-सुस्सर-आर्दै० सिया० ० ० तु० संखेंजदिभागणं बं० । हुंडसं०-थिरादितिण्णियु० सिया० संखेञ्जदिभागणं बं० । एवं भवण-वाणवें०-जोदिसि । णवरि तित्थ० वज । मणुस०-मणुसाणु० एसिं आगच्छदि तेसिं सिया०' उक्क० ।।
३८७. सोधम्मीसाणे देवोघं । सणकमार याव सहस्सार त्ति णिरयोघं । आणद याव णवगेवजा ति सहस्सारभंगो। णवरि तिरिक्खगदि०४ वज । अणुदिस याव सव्वह त्ति आभिणि. उक्क० पदे०बं० चदुणा०-छदंस०-बारसक०-पुरिस०-भय-दु.. उच्चा०-पंचंत० णि० बं० णि० उक्क० । दोवेद०-चदुणोक०-तित्थ० सिया० उक्क० । मणुस०-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-समचदु०-ओरालि अंगो०-वारि०-चण्ण४मणुसाणु०-अगु०४-पसत्थ०-तस०४-सुभग-सुस्सर-आदें-णिमि० णि० बं० णि तंतु०
अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। समचतुरस्रसंस्थान, वर्षभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सभग, सस्वर और आदेयका कदाचित बन्ध करता है और कदाचित बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। हुण्डसंस्थान और स्थिर आदि तीन युगलका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार अर्थात् सामान्य देवाके समान भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवामें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें तीर्थङ्कर प्रकृतिको छोड़कर सन्निकर्ष कहना चाहिए। तथा मनुष्यगति
और मनुष्यगत्यानुपूर्वी जिनके आती है, उनके कदाचित् बन्ध होता है और कदाचित् बन्ध नहीं होता। यदि बन्ध होता है तो नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध होता है।
२८७. सौधर्म और ऐशानकल्पमें सामान्य देवोंके समान भङ्ग है । सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवों में सामान्य नारकियोंके समान भङ्ग है । आनतकल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवों में सहस्रारकल्पके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें तिर्यश्चगतिचतुष्कको छोड़कर सन्नि कर्य कहना चाहिए । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें आभिनिबोधिकज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुमवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे वन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, चार नोकषाय और तीथङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यगति, 'पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरआङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु. चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुकृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्थिर आदि तीन युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध
१. ताप्रतौ 'तेसिं सा ( सि ) या' इति पाठः। २. ता प्रतौ ‘णवकेवेज त्ति' इति पाठः । ३. तापतौ 'सम्वत्ति । आभिणि.' इति पाठः ।
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