SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाधे पदेसबंधाहियारे १ थिरादिछयुग ० ' सिया० तं० तु० संखञ्जदिभागणं बं० । ओरालि० - तेजा क०चण्ण०४-अगु०४-बादर-पञ्जत्त- पत्ते० - णिमि० णि० ब ० णि० तं तु ० संखेजदिभागणं ० । एवं दोदंस० - मिच्छ० अणंताणु ०४-णस०-णीचा० । २४२ ३७९. णिद्दाए० उक्क० पदे०चं० पंचणा० - पंचदंस० चारसक० - पुरिस०-भय-दु०उच्चा० - पंचत० णि० बं० णि० उक्क० । सादासाद० चदुणोक० - तित्थ० सिया० उक्क० । मणुसग०- पंचिंदि०-समचदु० ओरा० अंगो० वञ्जरि०- मणुसाणु ० - पसत्थ० -तस०-सुभगसुस्सर-आदें० णि० चं० णि० तं तु ० संखेजं दिभागूणं बं० । ओरालि ०-तेजा० क ०चण्ण०४-अगु०४-बादर-पजत्त पत्ते० - णिमि० णि० बं० संखेजदिभागूणं बं० । थिरादितिष्णियुग० सिया० संखेजदिभागूणं बं० । एवं णिद्दाए भंगो पंचदंस० - बारसक०सत्तणोक० । ३८०. इत्थि० उक्क० पदे०चं० पंचणा० थीणगिद्धि ०३ - मिच्छ०-अनंताणु०४ छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क, नपुंसकवेद और नीचगोत्रकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । ३७९. निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय और तीर्थङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, समचतुरस्त्रसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, श्रस, सुभग, सुस्वर और आदेयका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्थिर आदि तीन युगलका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । इस प्रकार निद्रा के समान पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकपाकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए । ३८०. स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, मिध्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका १. तौ 'थावरादि छयुग०' इति पाठः । २. आमतौ 'पसत्थ० सुभग' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy