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________________ २२२ महाबंधे पदेसबंधाहियारे णि० संखेंजदिभागणं ब। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४ णि० ब० णि. उक० । णिद्दा-पयला-अट्ठक०-भय-द० णि अणु० अणंतभागणं । सादा०उच्चा० सिया० संखेंजदिभागणं बं० । चद संज० तिरिक्खगदिभंगो। पुरिस० सिया० संखेंजगुणहीणं० ० । असादा०-इत्थि०-णस०-णीचा० सिया० उक० । चदुणोक० सिया० अणंतभागणं ब । णामाणं सत्थाणभंगो । एवं तिण्णिसंठा०-चदुसंघ० । ३४४. वरि० उक० पदे०७० पंचणा०-चदुदंसणा०-पंचंत० णि. बं. संखेंजदिभागणं बं० । थीणगिद्धि०३-[असादा०-] मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्थि०-णqस०णीचा० सिया० उक्क० । णिद्दा'-पयला०-अपच्चक्खाण०४-भय-दु० णि० बं० तं० तु. अणंतभागणं बं० । सादा०-उच्चा० सिया० संखेंजदिभागणं च । पञ्चक्खाण०४णि ब अणंतभागणं बं । चद संज० तिरिक्खगदिभंगो। पुरिस०-जस० सिया० भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे,उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। सातावेदनीय और उच्चगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार वलनका भङ्ग तियश्चगतिकी मुख्यतासे कहे इनके सन्निकर्षके समान है। पुरुषवेदका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नीचगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार नोकषायोंका कदाचित् वन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार तीन संस्थान और चार संहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३४४. वर्षभनाराचसंहननका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यात. भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धित्रिक, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंस कवेद और नीचगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा, प्रचला, अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। सातावेदनीय और उच्चगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभ अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलनका भङ्ग तिर्यश्चगतिकी मुख्यतासे कहे गये इनके सन्निकर्षके समान है । पुरुषवेद और यशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार नोकषायोंका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट १. ता०प्रतौ'उक्क० णिहा' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'संखेजदिमागे (गू०) पश्चक्वाण' इतिपाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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