SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं २१९ चदुसंज० णि० बं० णि० संखेंजगु० । पुरिस० सिया० संखेंजगु० । जस० णि. संखेंअगु० । ३३७. णिरयग० उक्क० पदे०बं० पंचणा०-चदुदंस-पंचंत० णि बं० णि. अणु० संखेंजदिभागूणं बं० । थीणगिद्धि०३-असाद०-मिच्छ०-अणंताणु०४-णबुंस०णीचा० णि० बं० णि० उक्क० । णिद्दा-पयला-अट्ठक०-अरदि-सोग-भय-दु० णि. बं० णि० अणंतभागूणं बं० । चदुसंज० मिच्छत्तभंगो । एवं सव्वाणं णामपगदीणं मिच्छत्तपाओग्गाणं णामसत्थाण गो' । एवं णिरयाणु०-अप्पसत्थ०-दुस्सर० । ३३८. तिरिक्ख० उक्क० पदे०बं० पंचणा०-चदुदंसणा-पंचंत. णि० बं० णि० संखेजदिभागूणं । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुब०४-णवूस०-णीचा. णि. बं० णि० उक्क० । णिहा-पयला-अट्ठक०भय-दु० णि० ० अणंतभागणं बं । सादा० सिया० संखेंजदिमागणं ब। असादा०-बादर-सुहुम'०-पत्ते०-साधार० सिया० उक्क० । चदुसंज० मिच्छत्तभंगो। चदुणोक० सिया० अणंतभागणं बं० । णामाणं संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेदका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। यशःकीर्तिका नियमसे बन्ध करता है जो इसका संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। ३३७. नरकगतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्त्यानगृद्धि तीन, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद और नीचगोत्रका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । चार संज्वलनका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार मिथ्यात्व प्रायोग्य सब नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग नामकर्मके स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार नरकात्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरकी मुख्यतासे सन्निकर्प जानना चाहिए। ३३८. तिर्यञ्चगतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद और नीचगोत्रका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। सातावेदनीयका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। असातावेदनीय, बादर, सूक्ष्म, प्रत्येक और साधारणका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलनका भंग मिथ्यात्वके १. ता०प्रतौ मिच्छसपाओग्गाणं । णामसत्थाणभंगों' इति पाठः । २. वा०प्रतौ 'प्रसाद बार. सुहमः' आ०प्रती 'असादा० बारसक० सुहमः' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy