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महाबंधे पदेसबंधाहियारे ३०३. णिरएसु सत्तणं क० ओघं। तिरिक्खगदिसंजुत्ताओ ओघ । मणुस०तित्थ० ओघं । एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि सत्तमाए मणुसगदिदुगं तित्थ भंगो।
३०४. तिरिक्ख०-पंचिंदितिरिक्ख-पंचिं०पञ्जत्तेसुर ओघभंगो। पंचिंदि०तिरिक्खजोणिणीसु सत्तण्णं क० तिरिक्खगदिसंजुत्तदंडओ मणसगदिदंडओ एइंदियदंडओ सुहुमदंडओ ओघ । णिरय० जह० पदे०५० वेउवि०-वेउव्वि अंगो०णिरयाण. णि० ब० णि० जहण्णा । पंचिंदियादि याव णिमिणं ति णि. बं. असंखेंजगुणन्भहियं बं । एवं० रियाण० । देवग० जह० पदे०० वेउव्वि०वेउन्वि०अंगो०-देवाणु० णि. बंणि० जहण्णा । पंचिंदियादि याव णिमिणं त्ति णि. बं. अज. असंखेंजगुणब्भहियं 4। एवं देवाणुः । वेउवि० जह० पदे०५० दोगदि०-दोआणु० सिया० जह० । पंचिंदि०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०४.
३०३. नारकियों में सात कर्मोका भङ्ग ओघके समान है। तिर्यञ्चगति संयुक्त प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगति और तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें मनुष्यगतिद्विकका भङ्ग तीर्थकर प्रकृतिके समान है।
विशेषार्थ-ओघमें जिस प्रकार तीर्थङ्कर प्रकृतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष कहा है, उसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें मनुष्यगतिद्विककी मुख्यतासे सन्निकर्ष कहना चाहिए, क्योंकि सातवीं पृथिवीमें इनका बन्ध मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि नहीं करते। शेष प्रकृतियोंका सन्निकर्ष ओघप्ररूपणाको देखकर और स्वामित्वका विचारकर घटित कर लेना चाहिए।
३०४. सामान्य तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च योनिनी जीवोंमें सात कर्मोंका भङ्ग तथा तियश्चगति संयुक्त दण्डक, मनुष्यगतिदण्डक, एकेन्द्रियजाति दण्डक और सूक्ष्मप्रकृतिदण्डकका भेङ्ग ओघके समान है। नरकगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और नरकगत्यानुपूर्वीका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे इनका जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चन्द्रियजातिसे लेकर निर्माण तककी प्रकृतियों का नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे इनका असंख्यातगुणा अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार नरकगत्यानुपूर्वीकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये। देवगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक शरीर आङ्गोपाङ्ग और देवगत्यानुपूर्वीका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। यह पञ्चेन्द्रियजातिसे लेकर निर्माण तककी प्रकृतियोंका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु इनका असंख्यातगुणा अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार देवगत्यानुपूर्वीकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव दो गति और दो आनुपूर्वीका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो नियमसे इनका जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, भगुरुलघुचतुष्क, सचतुष्क और निर्माणका नियमसे
१. ताप्रती 'असंखेजगुणभ० ब० ॥४॥ णिरयेसु' ग्रा०प्रतौ संखेज्जगुणभदिय बं० ॥४॥ णिरएम' इति पाठः। २. आ०प्रती 'तिरिक्ख० पंचिंदि० तिरिक्ख पज्जत्तेसु' इति पाठः । ३. ता०प्रतौ 'वेउ अंगो। जिरयाणुः' इति पाठः। ४. आप्रतौ 'पंचिंदियाव' इति पाठः ।
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