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________________ १५० महाबंधे पदेसबंधाहियारे उक्क० । एवमेदाओ ऍक्कमेंकस्स उक्कस्सियाओ कादव्वाओ। देवगदिसंजुत्ताओ पम्मभंगो। सासणे सत्तणं क० मदि०मंगो। सेसं पम्माए भंगो। अणाहार. कम्मइगभंगो। एवं उक्कस्ससत्थाणसण्णिकासो समत्तो। २९०. जहण्णर पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० आभिणि० जह० पदे० बंधंतो चदुणाणा० णि० बं० णि० जहण्णा। एवमण्णमण्णस्स जहण्णा । एवं णवदसणा०-पंचंत० । दोवेदणी०१-चदुआउ०-दोगोद० उकस्सभंगो। २९१. मिच्छ० जह० पदे०६० सोलसक०-भय-दु० णि० ० णि. जहण्णा । सत्तणोक० सिया० ५० जहण्णा। एवं सोलसक०-णवणोक० एवमैकमेंकस्स जहण्णा। अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करता है। इसी प्रकार इनका परस्पर उत्कृष्ट सन्निकर्ष कहना चाहिए । देवगतिसंयुक्त प्रकृतियोंका भङ्ग पद्मलेश्याके समान है। सासादन सम्यक्त्वमें सात कोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पदुमलेश्याके समान है । अनाहारक जीवोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्वस्थान सन्निकर्ष समाप्त हुआ। २५०. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे आभिनिबोधिकज्ञानावरणके जघन्य प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरणका नियम से बन्ध करता है, जो नियमसे इनके जघन्य प्रदेशोंफा बन्ध करता है। इसी प्रकार इनका परस्पर जघन्य सन्निकर्ष कहना चाहिए। इसी प्रकार नौ दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य सन्निकर्ष जानना चाहिए। दो वेदनीय, चार आयु और दो गोत्रका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। विशेषार्थ-पाँचों ज्ञानावरणके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी एक जीव है, इसलिए इनमेंसे किसी एकका जघन्य प्रदेशबन्ध होते समय अन्यका नियमसे. जघन्य प्रदेशबन्ध होता है। यही कारण है कि सबका जघन्य सन्निकर्ष एक साथ कहा है। नौ दर्शनावरण और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी भी पाँच ज्ञानावरणके समान है। इसलिए इनका जघन्य सन्निकर्ष भी पाँच ज्ञानावरणके समान जाननेकी सूचना की है। दो वेदनीय, चार आयु और दो गोत्र ये प्रत्येक कर्म परस्परमें सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं। इनका उत्कृष्टके समान जघन्य सन्निकर्ष नहीं बनता, इसलिए इनका भङ्ग उत्कृष्टके समान कहा है। २९१. मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे इनके जघन्य प्रदेशोंका बन्ध करता है। सात नोकषायोंका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो नियमसे जघन्य प्रदेशोंका बन्ध करता है। इसी प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका परस्पर जघन्य सन्निकर्ष जानना चाहिए। 1. सा०प्रतौ 'पंचव दोवेदणी.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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