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________________ उत्तरपगविपदेसवंधे अंतरं २५३. विभंगे पंचणा-णवदंसणा०-मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०-तेजा.-क०वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० जह० जह० एग०, उक० छम्मासं देसूणं । अब जह० एग०, उक्क. चत्तारिसम० । दोवेदणी-सत्तणोक-दोगदि-एइंदि०-पंचिंदि० ओरालि०-छस्संठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ०-दोआणु०-पर-उस्सा०-आदाउजो०-दोविहा०-तस-थावर-बादर-पज्जत्त-पत्ते-थिरादितिण्णियु०-दोगो० जह० जह० एग०, उक० छम्मासं देसूणं ।अज० जह० एग०, उक० अंतो०। दोआउ० मणजोगिभंगो । दोआउ० देवभंगो। वेउब्वियछक्क-तिण्णिजादि-सुहुम-अपज. साधार० जह० अज. जह• एग०, उक्क० अंतो० । परावर्तमान प्रकृतियाँ हैं। दूसरे भोगभूमिमें पर्याप्त होने पर इनका बन्ध नहीं होता, इस. लिये इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य कहा है। नरकायु, देवायु और वैक्रियिकषट्कका जघन्य प्रदेशबन्ध एक तो घोलमान जघन्य योगसे होता है। दूसरे एकेन्द्रिय और विकलत्रय जीव इनका बन्ध नहीं करते, इसलिए इनके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त कालप्रमाण कहा है। यहाँ तिर्यश्चगति आदिका बन्ध नौवें प्रैवेयकमें और वहाँ जानेके पूर्व तथा निकलनेके बाद अन्तर्मुहूर्त काल तक नहीं होता, इसलिये इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका उत्कृष्ट अन्तर दो अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागर कहा है। चारजाति आदिका बन्ध सातवें नरकमें और वहाँ जानेके पूर्व तथा निकलनेके बाद एक-एक अन्तर्मुहूर्त तक नहीं होता, इसलिये इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका उत्कृष्ट अन्तर दो अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागर कहा है। शेष कथन सुगम है। ___ २५३. विभङ्गज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और स्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। दो वेदनीय, सात नोकषाय, दो गति, एकेन्द्रियजाति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीरआङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दोआनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, अस, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर आदि तीन युगल और दो गोत्रके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो आयुओंका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। दो आयुओंका भङ्ग देवोंके समान है। वैक्रियिकषटक, तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरण आदिका जघन्य प्रदेशबन्ध आयुकर्मके बन्धके समय घोलमान जघन्य योगसे होता है। यह जघन्य प्रदेशबन्ध कमसे कम एक समयके अन्तरसे भी हो सकता है और कुछ कम छह महीनाके अन्तरसे भी हो सकता है, इसलिए इनके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना कहा है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि यद्यपि यह जघन्य प्रदेशबन्ध चारों गतियों में होता है पर इसका उत्कृष्ट अन्तर नरक और देवगतिमें ही सम्भव है, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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