SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ महायंधे पदेसबंधाहियारे २५२. मदि-सुदे धुवियाणं जह० जह० खुद्दाभवग्गहणं समऊणं, उक्क० असंखेंजा लोगा। अज० जह• उक० ए० । दोवेदणी०'-छण्णोक०-पंचिंदि०-समच०पर०-उस्सा०-पसत्थ०-तस०४-थिरादितिण्णियुग०-सुभग-सुस्सर-आदें जह० णाणावरणभंगो। अज० जह० ए०, उक्क. अंतो० । णदुंस०-ओरालि०-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०छस्संघ०-अप्पसत्थ०-दुभग-दुस्सर-अणादें-णीचा जह० णाणावरणभंगो । अज. जह० एग०, उक्क० तिण्णिपलि० देसू० । दोआउ०-वेउव्वियछ० जह• अज० जह० एग०, उक्क० अणंतका०। तिरिक्ख०-मणुसाउ०-मणुसगदि०३ ओघं । तिरिक्ख०३ जह० णाणावरणभंगो । अज० जह० एग०, उक्क० ऍक्कत्तीसं साग० सादि० दोहि मुहुत्तेहि सादि० । चदुजादि-आदाव-थावर-सुहुम-अपज०-साधा० जह० णाणावरणभंगो। अज० जह० एगसमयं, उक्क० तेंत्तीसं० सादि० दोहि मुहुत्तेहि सादिरेगं । एवं अभवसि०मिच्छा० । अजघन्य प्रदेशबन्धका अन्तरकाल इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । मात्र इनमें क्रमसे एक दो और चार कषायको कम करके यह अन्तरकाल कहना चाहिए, क्योंकि मानमें क्रोधके, मायामें क्रोध और मानके तथा लोभमें चारोंके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त बन जाता है। २५२. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवामें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात ण है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। दो वेदनीय, छह .नोकषाय, पश्चन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, परवात, उच्छास, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर और आदेयके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तरकाल ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। नपुसकवेद, औदारिकशरीर, पाँच संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहननन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दु:स्वर, अनादेय और नीचगोत्रके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तरकाल ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्यप्रमाण है । दो भायु और वैक्रियिक छहके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकालप्रमाण है। तियश्चायु, मनुष्यायु और मनुष्यगतित्रिकका भंग आपके समान है । तिर्यश्चगतित्रिकके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो मुहूर्त अधिक इकतीस सागर है। चार जाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो मुहूर्त अधिक तेतीस सागर है। इसी प्रकार अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ-यहाँ प्रथम और द्वितीय दण्डकका स्पष्टीकरण जिस प्रकार नपुसकवेदी जीवोंमें कर आये हैं, उस प्रकार कर लेना चाहिए। तीसरे दण्डकमें कही गई नपुसकवेद आदिके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान ही है। तथा ये सब एक तो १. आ०प्रतौ 'जह० ए० उक्क. अंतो० । दोवेदणी.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy